कच्चे धागे | Kachche Dhaage
कच्चे धागे
( Kachche dhaage )
एक कच्चे धागे से बँधी प्रेम की डोर,
भाई बहन कहीं रहे खींचे अपनी ओर।
युग बदले पर बदले न स्नेह के रिवाज,
कहे बिन सुने भाई बहना की आवाज़।
हज़ारों कोस जग में जा रहने लगो सुदूर,
अकाट्य रक्षा कवच से रह न पाओ दूर।
परस्पर प्रेम से मैंने अडिग विश्वास जगाया
सदा -सर्वदा भैया अदम्य मंगलभाव आया।
वक्त संग घिरे भले हम रिश्तों की भीड़ में
अटूट रिश्ता सराबोर रहे विश्वास के नीर में।
शैली भागवत ‘आस’
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका
( इंदौर )