कृष्ण बाल लीला!

( Krishna Bal Leela ) 

 

खेलत गेंद गिरी यमुना-जल,कूद पड़े श्री कृष्ण कन्हैया।
गोकुल गाँव में शोर मचा ,दौड़ के आई यशोदा मैया।
ग्वालों के होश उड़े यमुना तट,कैसे बचेंगे कृष्ण कन्हैया।
बांके बिहारी, ब्रह्मांड मुरारी,को नाग के ऊपर देखी मैया।

गोंदी में आ जा मेरे कन्हैया,कहने लगे नन्द बाबा औ मैया।
रूठूंगी अब न कभी सुन लाला,माखन-दूध खिलाएगी मैया।
पुकार रहे हैं सारे सखा तुम्हें,बाहर निकलो बाल कन्हैया।
बांधि के नाग को दूर कियो,बिष बाधा से कोई मारेगी न गइया।

अंतर्यामी असुर संहारक,कृष्ण की लीला बरनि न जाई।
पांव में पैजनि,हाथ में मुरली,नन्दराय जी की धेनु चराई।
धन्य हैं देवकी, धन्य यशोदा,धन्य हैं देखो ये दोनों माई।
तीनों लोक के जो हैं स्वामी,उनकी मधुर मुस्कान चुराई।

आज के दौर में बर्गर, पिज्जा,बच्चों को लोग खिलाय रहे हैं।
स्वाद के तड़के में ऐसे हैं डूबे,रस्ता ये कैसा दिखाए रहे हैं।
टी.व्ही.सीरियल में ऐसे फँसे,संस्कार न उनमें डाल रहे हैं।
कृष्ण के जैसे बनते ये बच्चे,कंस के रूप में ढाल रहे हैं।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

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