कागा की कलम

कागा की कलम | Kaga ki Kalam

विषय सूची

खोज

जो खोजा वो पाया गोता मार गेहराई में ,
सीपों में छुपे है मोती मिले गेहराई में !

बीते दिन जीवन के बेठे रहे किनारे पर ,
जब ख़्याल आया खोजने का मिले गेहराई में !

कंगाल कोई नहीं सबके अंदर मोजूद माणक लाल ,
डूबने का डर छलांग मारी मिले गेहराई में !

जान का ख़त़रा हिम्मत ह़ोस़ला अफ़ज़ाई नहीं कोई ,
मंझधार में मददगार मांझी लाल मिले गेहराई में !

सीप शंख बिखरे पड़े बेकार स़ाह़ल पर ख़ूब ,
ज़ख़ीरा ज़र ख़ेज़ तलहटी में मिले गेहराई में !

वो बन हम-रूह़ बसता तेरे अंदर ‘कागा’
बाहर नहीं अंदर हैं तलाश गेहराई में !

जब तक

जान में जान जब तक साथ तब तक ,
दम में दम जब तक साथ तब तक !

ज़िदंगी का भरोसा नहीं आज है कल नहीं ,
जिस्म में सांसें जब तक साथ तब तक !

सांसें चल रही दिल की धड़कनें तेज़ तर्रार ,
रूह़ में रूह़ जब तक साथ तब तक !

पहली नज़र में प्यार हुआ आंखों का इक़रार ,
तकरार में इंकार नहीं जब तक साथ तब तक !

दिल की बातें दिल जाने क़ास़द दो नैन ,
नैनों में चैन जब तक साथ तब तक !

चलो अब चलते है मिलेंगे दोबारा अलविदा ‘कागा’
दिलों में दिल जब तक साथ तब तक!

सीमा प्रहरी

हम बिना पगार के सीमा प्रहरी रहते सावधान ,
हम बिना तनख्वाह के सुक्षा प्रहरी रहते सावधान !

सीम रेखा के उस पार दुश्मन का डेरा ,
हम बिना लालच के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

दुश्मन की हर गति -विधि पर पैनी नज़र ,
हम बिना उजरत के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

तार बंदी लगी तगड़ी परिंदा पर नहीं मारता ,
हम बिना वेतन के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

दुश्मन अपनी आदत से मजबूर करता रहता ख़ुराफ़ात ,
हम बिना भुगतान के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

देश वासी चैन से सोते अपनें घरों में ,
हम बिना मज़दूरी के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

हमारी दो आखें कान खोल सोते हम लोग ,
हम बिना भत्ता के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

हम सच्चे राष्ट्र भगत देश प्रेमी बातूनी नहीं ,
हम बिना प्रशंसा के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

चौकस चाक चौबंद रहते मोर्चा सम्भाले चौकीदार ‘कागा’
हम बिना इनाम के सीमा प्रहरी रहते सावधान !

बुलंद बंदा

झुक जाते फलदार दरख्त लद कर फल से ,
झुक जाते जलधार झरने भर कर जल से !

बांस झुकता नहीं रहता अकड़ में सीना तान ,
जला राख कर देता जीव जानवरों की जान !

हिमालय से बहते ऊंचाई से नीचे की ओर
नदी नाले झरने कल कल करते झक झोर !

अमृत धारा चलती धूआं धार समु़ंदर में समाये ,
प्यासी नदियां जल भरी मिल कड़वा बन जाये !

अकड़ जाते जनाज़े जिस्म से जान निकलने पर ,
नतीजा नामो-निशान जलायें दफ़नायें जान निकलने पर !

‘कागा’ झुकना नहीं बेज़मीर होकर अपना ज़मीर बेच ,
ग़रीब होते ग़ैरतम़द रुकते नहीं अपना ज़मीर बेच !

ह़लाल रोज़ी

ह़लाल का रिज़क़ खाना दलाली कर नहीं ,
हक़दार बन रिज़क़ खाना दलाली कर नहीं !

मेह़नत मज़दूरी ख़ून पसीने की कमाई ह़लाल ,
सच्चाई की राह़ चलना दलाली कर नहीं !

ह़ोस़ला बुलंद रख लोग बड़े चालाक चापलूस ,
कमज़ोर नहीं हो जाना दलाली कर नहीं !

त़ोर तरीक़ा सिखाने को तैयार मुफ़्त में ,
चुंगल में नहीं आना दलाली कर नहीं !

दलाली के दांव पेच आसान मुश्किल नहीं ,
ज़ालिम सितम-गर ज़माना दलाली कर नहीं !

सच्च की नाव डगमग होती डूबती नहीं ,
उस पार उतर जाना दलाली कर नहीं !

जीवन में आते रहते कठिन पल ‘कागा’
मारते लोग ख़ूब त़ाना दलाली कर नहीं !

गुमराह़

ग़ाफ़िल गुमराह़ हो रहे चालाकी चाल में ,
जाह़िल हमराह़ हो रहे चालाकी चाल में !

पाखंड का बोल-बाला नोटंकी करते नादान ,
गूंथ मकड़ जाल चालाकी की चाल में !

फ़ुट पाथ पर बेठ देख हस्त रेखायें ,
बतायें मुक़दर ह़ाल चालाकी की चाल में !

पत्थरों की पोटली पास रख रंग बिरंगी ,
कहते माणक लाल चालाकी की चाल में !

तावीज़ गंडे बनाते हर मसले का ह़ल ,
करते बड़ा कमाल चालाकी की चाल में !

क़िस्मत चमकाने का कर दावा एंठते पैसे ,
ख़ुद होते कंगाल चालाकी की चाल में !

निजोमी ज्योत्षी बन करते टोने टोटके ‘कागा’
खबरदार फंसना नहीं चालाकी की चाल में !

सत्य की खोज

मैं निकल पड़ा सत्य की खोज में अकेला,
मैं निकल पड़ा ख़ुद की खोज में अकेला !

मेरे वजूद का अस़ल मालूम नहीं ख़ुद अपना ,
मैं निकल पड़ा ख़ुद की तलाश में अकेला !

ठोर ठिकाना बदल चुका बार बार ख़ुदार बन ,
मैं निकल पड़ा ख़ुद की फ़िराक़ में अकेला !

गिरगिट जैसे रंग बदले रंगीन संगीन अपना चेहरा ,
मैं निकल पड़ा ख़ुद की पहचान में अकेला !

अजनबी शहर की गलियों में खो गया पागल ,
मैं निकल पड़ा ख़ुद की परख में अकेला !

मैं कौन कहां से आया कहां जाना ‘कागा’
मैं निकल पड़ा ख़ुद को ढूंढने में अकेला !

ज़िंदगी का राज़

मेरी ज़िंदगी का राज़ कोई जान नहीं सका ,
मेरी ज़िंदगी का साज़ कोई सुन नहीं सका !

ख़ुदार मानते ख़ुद को अस़ल आला अ़ज़ीम अफ़लात़ून ,
मेरी ज़िंदगी का नाज़ कोई जान नहीं सका !

ग़ुरूर था अपनी धन दोलत शानो शोक़्त का ,
मेरी ज़िंदगी का अंदाज़ कोई जान नहीं सका !

अकड़ कर जलते रहे ह़स़द की आग में ,
मेरी ज़िंदगी का आवाज़ कोई जान नहीं सका !

गिद्ध नज़रिया रहा नोचते रहे गिरी लाशों को ,
मेरी ज़िंदगी का जांबाज़ कोई जान नहीं सका !

दग़ा बाज़ धोखे बाज़ दुश्मन बने हमारे ‘कागा’
मेरी ज़िंदगी का हम राज़ कोई जान नहीं सके !

ह़क़ीक़त

क़लई उतर गई अस़लियत आ गई सामने ,
नक़ाब हट गया ह़क़ीक़त आ गई सामने !

चेहरा छुपाये बेठे घू़ंघट की ओट में ,
पल्लु खुल गया फ़ज़ीलत आ गई सामने !

सुहाग रात मनाई सपने संजोये थे हज़ार ,
पर्दा पल्ट गया नज़ाकत आ गई सामने !

हवेली में क्या होता कोई नहीं जानता ,
पट उल्ट गया ग़फ़लत आ गई सामने !

चेहरा चांद जेसे चमकता तारों के बीच ,
बादल हट गये ह़िफ़ाज़त आ गई सामने !

चांद की बेवफ़ाई चकोरी से हरदम रहती ,
चांदनी को शक शरारत आ गई सामने !

बग़ल में दबाये बेठे बदमाश ख़ंजर ‘कागा’
साज़िश पर्दा फ़ाश ज़लालत आ गई सामने !

दीन दयाल

कोई तो पैदा होगा माई का लाल ,
कोई तो पैदा होगा ग़रीबों की ढाल !

बे-अ़कल में अकड़ होती पकड़ नहीं ,
कोई तो पूछेगा ग़रीबों का हाल चाल !

आकाश तले जिनका बसेरा धणी धोरी नहीं ,
कोई तो आयेगा ग़रीबों की करने पड़ताल !

निर-वस्त्र आया मानव इस संसार में ,
कोई तो पूंछेगा आंसू भीग रहे गाल !

देवदूत बन आते दाता जब आती आफ़्त ,
कोई तो करेगा सुरक्षा जब मचेगा बवाल !

कीड़ी को कण हाथी को देता मण,
कोई तो आयेगा बन दयालू दीन दयाल !

अणु से प्रमाणु तक शक्ति भक्ति में ,
कोई तो आयेगा बन फ़िरश्ता करेगा कमाल !

सच्च का सूरज उगने वाला धेर्य रख ‘कागा’
कोई तो आयेगा मिटेगा अंधेरा बन मशाल !

बादल

जो बादल गर्जते है वो बरसते नहीं ,
जो बादल बरसते है वो गर्जते नहीं !

ख़ामोशी में ख़ूशी ख़ूब रह कर देख ,
बिजली गिर जाती है वो बरसते नहीं !

आसमान पर छा जाते उमड़ घुमड़ कर ,
बनते बिगड़ते रहते बादल वो बरसते नहीं !

काले नीले पीले बादल इंद्र-धनुषी छटा ,
घटा घूम घन घोर वो बरसते नहीं !

छुपे रुस्तम निकले फ़ुज़ूल किसी लाग लपेट ,
झमा झम झूम चलते वो बरसते नहीं !

हवा का रुख़ बदला बरसी बारिश बूंदें ,
रिम झिम झनकार बिना वो बरसते नहीं !

मोर नाचे मस्ती में म्यूरी मगन ‘कागा’
बिना सुन म्यूर पुकार वो बरसते नहीं !

अधूरे अरमान

कुछ सपने रह गये अधूरे ,
कुछ अरमान रह गये अधूरे !

नींद के सपने चकना चूर ,
कुछ तमाम रह गये अधूरे !

जाग कर देखे कुछ सपने ,
कुछ नाम रह गये अधूरे !

मह़फ़ल में मस्त मय प्याला ,
कुछ जाम रह गये अधूरे !

मजलिस में मोज मस्ती मुस्कान ,
कुछ त़ाम रह गये अधूरे !

मदहोश हो गये पीते पीते ,
कुछ कलाम रह गये अधूरे !

कौन करेगा मुकमल ख़्वाब ‘कागा’
कुछ प्याम रह गये अधूरे !

राम मिलन

अंदर के पट खोल तुम्हें राम मिलेगा ,
बाहर भटक नहीं डोल तुम्हें राम मिलेगा !

अंदर मंदिर मस्जिद चर्च गुरू द्वारा स्तुप ,
घट का घू़ंघट खोल तुम्हें राम मिलेगा !

मृग नाभि बसे कस्तूरी दोड़े दूर दूर ,
सूंघ अपना सीना खोल तुम्हें राम मिलेगा !

राम रह़ीम गाड महावीर बुद्ध अलोकिक शक्ति ,
भीतर का द्वार खोल तुम्हें राम मिलेगा !

अड़सठ तीर्ध तेरे घट मांहें सुंदर स़ूरत ,
अपने बंद नैन खोल तुम्हें राम मिलेगा !

आत्मा को परमात्मा कहते वैद पुरान क़ुरान ,
पढ़ पवित्र ग्रंथ खोल तुम्हें राम मिलेगा !

हीरा बांधा गठरी में गांठ देकर ‘कागा’
ग़ाफ़िल गठरी गांठ खोल तुम्हें राम मिलेगा !

कुत्ते काटते नहीं

भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं किसी को ,
काटने वाले कुत्ते चाटते नहीं किसी को !

पालतू कुत्ते होते बावफ़ा करते घर रखवाली ,
फ़ालतू वाले बेवफ़ा चाटते नहीं किसी को !

कुत्ते की दुम टेढ़ी रहती सीधी नहीं ,
आदत से मजबूर काटते नहीं किसी को !

कुत्तों का नस्ल हर क़िस्म का मौजूद ,
गले पट्टा ज़ंजीर काटते नहीं किसी को !

सौंघ कर समझ जाते अपना पराया अजनबी ,
झपट पड़ते झटपट चाटते नहीं किसी को !

पागल कुत्ते काट लेते रहती पूंछ सीधी ,
लार टपकी काटता चाटते नहीं किसी को !

गांव के शहर के कुत्ते होते निराले ,
रोटी पर चुप काटते नहीं किसी को !

एक गली का कुत्ता दूसरी का दुश्मन ,
कर देते लड़ाई चाटते नहीं किसी को !

हाथी देख भौंकते दूर दलेरी से ‘कागा’
करते दिखावा ज़ोरदार काटते नहीं किसी को !

कांट-छांट

बाल बढ जायें तो सिर नहीं काटते ,
नाख़ुन बढ़ जायें तो हाथ नहीं काटते !

बाल नाख़ुन बढ़ जाना प्रकृति का नियम ,
सिर शरीर पर उगते रहते नहीं काटते !

पत्ते झड़ते पैड़ पौधों से पतझड़ पर ,
नये कौंपल पैदा होते दर्ख़त नहीं काटते !

खेतों में उगते खर-पतवार घास फूस ,
अन-चाहे की बजाय फ़स़ल नहीं काटते !

गुलाब बूटे में खिलते फूल कांटे साथ ,
फूल चुने जाते बेशक कांटे नहीं काटते ,

हाथों पैरों की उंगलियां बराबर नहीं ‘कागा’
बराबरी वास्ते हो जाये नाराज़ नहीं काटते !

एह़सान फ़्रामोश

सांप पाले जान के दुश्मन बन गये ,
दूध पिलाया जान के दुश्मन बन गये !

कुंडली मार बंद थे टोकरी में ख़ामोश ,
जब खोला जान के दुश्मन बन गये !

भस्मासुर ने तप किया भोले नाथ का ,
मिला वरदान जान के दुश्मन बन गये !

बिल्ली ने सिखाया करतब कमाल शेर को ,
खाने आया जान के दुश्मन बन गये !

भलाई का ज़माना नहीं एह़सान किये अनेक,
भूल गये जान के दुश्मन बन गये !

छाया मिली फल खाए मीठे मधुर ‘कागा’
काटने लगे जान के दुश्मन बन गये !

आबो-हवा

क्या फ़िज़ा बदली अब जीने में मज़ा नहीं ,
क्या आबो-हवा बदली पीने में मज़ा नहीं !

बहाना बना कर जाते थे उनकी गली में ,
जवानी हो गई रवां जीने में मज़ा नहीं !

एक झलक पाने वास्ते बदल देते थे रास्ते ,
अब होशो ह़वास हवा जीने में मज़ा नहीं !

दिल जवां धधक जाता मिलने को यदा-कदा ,
क्या स़ूरत बदली अब जीने में मज़ा नहीं !

मिलने पर ख़ुशबू आती थी गुलाब इत्तर की ,
अब नज़र हुई धुंधली जीने में मज़ा नहीं !

इज़्ज़त आबरू एहतराम नहीं अब उड़ चलो ‘कागा’
सांसों में क़ूअत नहीं जीने में मज़ा नहीं !

ढाटी मारवाड़ी

जहां अनाड़ी आग़ाज़ है वहां अंजाम कैसा होगा ,
जहां अनाड़ी अंदाज़ है वहां अंजाम कैसा होगा !

जहां नहीं पहुंची बैल गाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी ,
जहां मारवाड़ी समाज है वहां पैग़ाम कैसा होगा !

चमड़ी चली जाये ग़म नहीं दमड़ी नहीं जाये ,
जहां कबाड़ी काज है वहां आराम कैसा होगा !

ढाटी का ढंग ढ़ाला ढाट का भोला भाला ,
जहां जुगाड़ी साज है वहां अ़वाम कैसा होगा !

दग़ा बाज़़ नहीं सीधे सादे स़ाफ़ दिल नेक ,
जहां खिलाड़ी बाज़ है वहां क़्याम कैसा होगा !

ढाटी ढल जायें हर सांचे घुल मिल पिघल ,
जहां झाड़ी आज है वहां धाम कैसा होगा !

दूध पानी की दोस्ती का तोड़ नहीं “कागा’
जहां दाढ़ी रिवाज है वहां इंतक़ाम कैसा होगा !

जान एक

जिस्म दो जान एक प्यार की निशानी ,
इस्म दो जान एक प्यार की निशानी !

दिल चला जाता उड़ बिना पर पंख ,
रोती दोनों आंखें मिल दीदार की निशानी !

बिछुड़ जाने मिल जाने पर सुबक जाती ,
दुबक रोती ज़ार ज़ार दिलदार की निशानी !

राह चलते लगती चोट निकलती साथ आह ,
चाह होती दोनों एक इक़रार की निशानी !

जिस्म क़िस्म रस्मो रिवाज बदल जाते नये ,
लिबास रेशमी मख़मली ऊनी ज़ाहिर की निशानी !

इंकार तकरार का नामो निशान नहीं ज़़रा ,
दिलों के कंवल खिलते बहार की निशानी !

दिल की धड़कन की आवाज़ सुन ‘कागा’
अश्क उमड़ आते ख़ुश गवार की निशानी !

बेबस

बेबस चल नहीं सकता पैरों में जकड़ी बेड़ियां ,
बेकस हिल नहीं सकता हाथों में बंधी हथकड़ियां !

मजबूर हूं जिस्म मेरा मज़बूत बंधा ज़ंजीरों में ,
माज़ूर हूं ज़खमों से छलनी बंधा ज़ंजीरों में !

चलना चाहता हूं वक़्त की रफ़्तार के साथ ,
मगर ग़ुलाम हूं ग़ैरों का गुफ़्तार के साथ !

मु़ंह खोल नहीं सकता बोल लफ़्ज़ ज़ुबान से ,
लगा है ताला हरिसन का लफ़्ज़ ज़ुबान से !

पंजरे में क़ैद हूं पेहरा बाज़ का संगीन ,
पर पंख कटे कैंची से रहता उदास ग़मगीन !

‘कागा’ रहता आज़ाद पंछी आबाद अपने घौंसले में ,
सदा सुकून से शादाब बनकर अपने घौंसले में !

दुखी लोग

लोग अपने दुख को देख दुखी है ,
लोग पराये सुख को देख दुखी है !

लुच्चे लोगों के पेट में आती मरोड़ें ,
पराई तरक़्क़ी बहबूदी को देख दुखी है !

शानो शोक्त शहोरत से होते बेह़द परेशान ,
पराया धन दोलत को देख दुखी है !

ख़ुद करते नहीं ख़िदमत ख़ल्क़ की नादान ,
पराई इज़्जत आबरू को देख दुखी है !

बराबरी नहीं कर सकते बुराई करना आसान ,
पराये रोब रुतब्बा को देख दुखी है !

लोफ़र लफंगे लोग खोजते रहते ख़ामियां पराई ,
किसी की कामयाबी को देख दुखी है !

दुबले पतले होते रहते ग़ुस़्से ग़म में ,
बढ़ता क़द काठी को देख दुखी है !

तीस मार ख़ान समझ रहे ख़ुद को ,
अपनी कायर कमज़ोरी को देख दुखी है !

ह़स़द रखते हर किसी से नालायक नाकाम ,
पराये चमकीले चेहरे को देख दुखी है !

बिना चले मंज़िल नहीं मिल सकती ‘कागा’
मुफ़्त नहीं मिली को देख दुखी है !

जुगुनू

मैं जुगुनू हूं अंधेरी रात में चमकता हूं ,
मै दिया हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

मैं बिना तेल बाती का दिया जान दार ,
क़ुतुब तारा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

मुझे ख़ोफ़ नहीं आंधी तूफ़ान ओले बारिश से ,
आंख तारा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

तालीम देती नूरानी रोशनी नूर से ह़ुज़ूर यारा ,
सबका सहारा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

मेरी अदावत अंधेरे से हवा फ़ालतू मेरी दुश्मन ,
जग उजयारा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

करोड़ों दीपक बुझाये हवा ने जलाया नहीं एक ,
सबका प्यारा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

चांद की ओट में चमकते लाखों सितारे ‘कागा’
कोहनूर हीरा हूं अंधेरी रात में चमकता हूं !

ज्वाला

घर में चिंगारी सुलग रही दबाना पड़ेगा ,
पड़ोस में आग भभक रही बुझाना पड़ेगा !

चिंगारी से बनती ज्वाला लपटें आसमान तक ,
मज़हब की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

नाम निहाद शरारती अनास़र करते छेड़-खानी ,
ग़ुलामी की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

ऊंच नीच छूआ छूत भेद भाव लड़ाई ,
जाति की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

अगड़ा पिछड़ा का झगड़ा बड़ा बखेड़ा ,
ग़रीबी की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

ज़ुबान इलायक़ा काला गोरा सांवला रंग ,
तफ़ावत की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

फूट डालो राज करो का उस़ूल बिगड़ेल ,
बिखराव की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

स़दियां गुज़र गई हम एक नहीं हुऐ ,
अ़दावत की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

बुनियाद अलगाव पर लगाव नहीं किसी से ,
ह़सद की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

दुनिया धधक रही नफ़रत में बेक़ाबू ‘कागा’
सत्ता की आग जल रही बुझाना पड़ेगा !

साहित्य

साहित्य समाज का दर्पण होता है ,
साहित्य समाज का अर्पण होता है !

सोये समाज को जगाना पुण्य कार्य ,
सोच संस्कार का समर्पण होता है !

शिक्षा दीक्षा परीक्षा से अपेक्षा बढ़ती ,
अशिक्षा उपेक्षा का सृजन होता हैं !

समाज सोया है गहरी नींद में ,
झंझोड़ कर जगाना संवर्धन होता है !

अंध विश्वास कुरीतियों के दलदल में ,
बाहर निकालने से मर्दन होता है !

कवि बताये सत्य का मार्ग ‘कागा’
गूंजे स्वर से गर्जन होता है !

ओलाद

आज कल की ओलाद मां बाप को मानती बोझ ,
आज कल की संतान मां बाप को मानती बोझ !

लिख पढ़ शिक्षित बन जब लग जाती सरकारी नोकरी ,
सास ससुर लगते प्यारे मां बाप को मानते बोझ

बहिन भाई भाभी अड़ोस पड़ोस रिश्ते नाते सब बेकार ,
साली साला लगते दुलारे मां बाप को मानते बोझ !

जोरू का ग़ुलाम बन जाते ज्यादा बाक़ी सब बेकार ,
ससुराल से स्नेह करते मां बाप को मानते बोझ !

हर बात पर करते मां बाप से बखेड़ा बेशुमार,
ग़ुस़्स़ा करते गंभीर बेग़ैरत मां बाप को मानते बोझ !

बुढ़े बुज़ुर्ग होते बीमार देख भाल नहीं कराते उपचार ,
ह़ाल चाल पूछते नहीं मां बाप को मानते बोझ !

छोड़ आते वृद्ध आश्रम में बड़े बेशर्म बन बेशऊर ,
घर से बेदख़ल करते मां बाप को मानते बोझ !

मरने पर करते मोज मस्ती ओसर मोसर मृत्यू भोज ,
फ़ुज़ूल ख़र्च क्या फ़ायदा मां बाप को मानते बोझ !

समाज सुधार का करते एलान कुरीति मिटी नहीं ‘कागा’
मां बाप की क़द्र करो मां बाप को मानते बोझ !

वज़ीफ़ा

मोह़ब्बत करके देख बदले में मोह़ब्बत मिलेगी ,
नफ़रत करके देख बदले में नफ़रत मिलेगी!

जो बीज बोयेगा वो फ़स़ल काटना पड़ेगा ,
स़वाब करके देख बदले में मस़रत मिलेगी !

ख़िदमत कर ग़ल्क़ की दिलो जान से ,
ख़्वाहिश करके देख बदले में ह़सरत मिलेगी !

हलचल जारी रख हिम्मत ह़ोस़ला अफ़ज़ाई से ,
मदद करके देख बदले में बरकत मिलेगी !

एक क़दम चल आगे दो क़दम मंज़िल ,
धमाल करके देख बदले में जन्नत मिलेगी !

ज़हनुम जन्नत वास्ते करता इंसान जद्दो-जहद ,
मेहनत करके देख बदले में उजरत मिलेगी !

इशक आगा का दरिया जला देता परवाने ,
इश्क़ करके देख बदले में शहादत मिलेगी !

शम्मा पर जल कर मरते पतंगे ‘कागा’
क़ुर्बानी करके देख बदले में क़ीमत मिलेगी !

सीमा पार

मेरा यार सीमा पार कैसे करें दीदार ,
मेरा प्यार सीमा पार कैसे करें दीदार !

बच्चपन बीता एक साथ खेल कूद में ,
गुडा गुड्डी का प्यार कैसे करें दीदार !

सपने में नहीं सोचा था जुदा होंगे ,
बीच में बनी दीवार कैसे करें दीदार !

भाग्य में लिखा बिछोड़ा छोड़ा घर ठिकाना ,
दो दिलों में दरार कैसे करें दीदार !

ख़ून एह़सास के रिश्ते हुए चकना चूर ,
मुखड़ा देखने को बैदार कैसे करें दीदार !

रब रूठा हम नहीं रूठे प्यार बरक़रार ,
मिलने को दिल बेक़रार कैसे करें दीदार !

होली दीवाली जब आती दिल धधक जाता ,
याद सताये बार बार कैसे करें दीदार !

दिल जिंदा ज़रूर जिस्म जनाज़े जेसा माज़ूर ,
रूह़ रोता ज़ार ज़ार कैसे करें दीदार !

आंखों का दरिया सूखा नहीं रहता लबरेज़ ,
कब होंगे दो चार कैसे करें दीदार !

जलते जीवन जीने से मौत अच्छी ‘कागा’
कि़स्तों में मरना बेकार कैसे करें दीदार !

देश प्रेम

हम मुल्क पर मर मिटने वाले मस्तान ,
हम मुल्क पर जान देने वाले जवान !

आंच नहीं आने देंगे केसी लगे आग ,
बादल बन बुझा देंगे देकर अपनी जान !

जान हथेली पर रख बेठे है ख़बरदार ,
जान की बाज़ी लगा करेंगे सिर क़ुर्बान !

हम गीदड़ नहीं दुम दबाये भाग जायें ,
हम शेरों की संतान कर देंगे घमसान !

सीमायें हमारी सरक्षित चाक चोबंद चारों ओर ,
मिटा देंगे दबंग दुश्मन का नामो निशान !

गर गुस्ताख़ी की ग़फ़लत में जान बूझ ,
लोहे के चन्ने चबा देंगे सीना तान !

आंख उठा देखी हमारी ओर किसी ने ,
आंखें फोड़ देंगे काट तोड़ नाक कान !

धौंस धमकी से डरते नहीं हम होशियार ,
आन बान शान से भरपूर देश आ़लीशान !

प्रणों से प्यारा देश हमारा सुन ‘कागा’
कायर कमज़ोर नहीं मज़बूत हाथों में कमान !

दिल दरिया

दिल एक दरिया जिसके दो अलग किनारे ,
दिल एक चदरिया जिसके दो अलग किनारे !

दो साह़िल के बीच बहती जल धारा ,
बरसी ऊपर बदरिया जिसके दो अलग किनारे !

जल कल कल कर चलता मोज मस्ती ,
कश्ती एक ज़रिया जिसके दो अलग किनारे !

पानी में रहती मछली फिर भी प्यासी ,
कैसी नज़र नज़रिया जिसके दो अलग किनारे !

पनघट पुख़ता नहीं कोई खो़फ़ लगता ख़ूब ,
कैसे भरें गगरिया जिसके दो अलग किनारे !

दो किनारों का नहीं होता मिलन कभी ,
किनारे खड़ी गुजरिया जिसके दो अलग किनारे !

दिल चाहते दोनों के मिलने को बेताब ,
दोनों पास डगरिया जिसके दो अलग किनारे !

दो नेन आपस में मिलने को तरसे ,
भर लेते काजरिया जिसके दो अलग किनारे !

पिया बसे उस पार जिया जले यहां ,
कैसे जाऊं नगरिया जिसके दो अलग किनारे !

दूर खड़े निहारें नैनों बरसे मेघ मल्हार ,
मन करे मुजरिया जिसके दो अलग किनारे !

परिंदे उड़ते ऊपर बे-रोक टोक ‘कागा’
ग़मगीन रहते गडरिया जिसके दो अलग किनारे !

इंसानियत

इंसान के बीच तकरार पैदा नहीं कर ,
इंसान के बीच दरार पैदा नहीं कर !

भाई-चारा बनाये रख स़दियों की अमानत ,
इंसान के बीच दीवार पैदा नहीं कर !

तिल का ताड़ बनाना बे-मतलब बेकार ,
इंसान के बीच रार पैदा नहीं कर !

राई का पहाड़ बनाना चाहते ग़ल्त़ है ,
इंसान के बीच मार पैदा नहीं कर !

इ़ंसानियत धर्म इंसान का अदल इंस़ाफ़ कर ,
इंसान के बीच ग़दार पैदा नहीं कर !

घर के बर्तन आपस में टकरा जाते ,
इंसान के बीच झनकार पैदा नहीं कर !

वाद विवाद को संवाद से सुलटा दे ,
इंसान के बीच इंकार पैदा नहीं कर !

लहु से लहु धोना स़ाफ़ नहीं होता ,
इंसान के बीच ललकार पैदा नहीं कर !

कलह कलेश से रहो कोसों दूर ‘कागा’
इंसान के बीच बीमार पैदा नहीं कर !

मुसाफ़िर

सफ़र का सिलसला जारी है अभी तक रुके नहीं ,
सफ़र का क़ाफ़ला जारी है अमी तक रुके नहीं !

हम सफ़र हम राही चलते रहे हर डगर पर ,
सफ़र का मुफ़ास़ला जारी है अभी तक थके नहीं !

गठरी उठाई ग़ैरत की ह़ेरत हरगिज नहीं ज़रा भी ,
सफ़र का ह़ोस़ला जारी है अभी तक झुके नहीं !

रहज़न रहबर बन लूट पाट करने की फ़िराक़ में ,
सफ़र का ढकोसला जारी है अभी तक बिके नहीं !

रोड़े कांटे बिछाये बीच रास्ते में कर भारी रुकावट ,
सफ़र का मसला जारी है अभी तक अटके नहीं !

अफ़वाहों का बज़ार गर्म देरी दूरी दरार का ख़ोफ़ ,
सफ़र का हमला जारी है अभी तक भटके नहीं !

मंज़िल कर रही बेस़बरी से इंताज़ार हमारा बेकरारी से ,
सफ़र का ज़लज़ला जारी है अभी तक झटके नहीं !

सैयाद का इरादा नेक नही भनक लग गई ‘कागा’
सफ़र का वलोला जारी है अभी तक लटके नहीं !

याद रखना

अपनी दुआओं में याद रखना इस घायल को ,
अपने पाओं में बांध रखना इस पायल को !

नज़रों की चोट ने दर्द दिया चीख़ निकली ,
अपनी स़दाओं में याद रखना इस घायल को !

दिल बेज़ुबान करती ह़ेरत अंगेज़ आंखों से इशारा ,
अपनी अदाओं में याद रखना इस घायल को !

आह निकली अंदर से कोई निशान नहीं देखा ,
अपनी फ़िज़ाओं में याद रखना इस घायल को !

दीदार हुआ आंखों से पेग़ाम पहुंचा दिल तक ,
अपनी आहों में याद रखना इस घायल को !

फ़रियाद नहीं करना किसी से स़बूत नहीं शाहद ,
अपने गवाहों में याद रखना इस घायल को !

जान निकल रही तेरी जुदाई में दिल मचलता ,
अपनी राहों मे याद रखना इस घायल को !

प्यार ने पागल बनाया लेला मजनू जेसा इश्क़ ,
अपनी निगाहों में याद रखना इस घायल को !

गले लगाना सीने से चिपक स़िदक़ से ‘कागा’
अपनी बांहों में याद रखना इस घायल को

मिट्टी का पुतला

मानव मिट्टी का पुतला मिट्टी में मिल जाना ,
मानव मिट्टी का गोला मिट्टी में मिल जाना !

हाड मांस रक्त मल मूत्र रज वीर्य मेलाप ,
चाम से ढका पुतला मिट्टी में मिल जाना !

नो माह मां के गर्भ में पालन पोषण ,
नाभी से जकड़ा पुतला मिट्टी में मिल जाना !

ऊंधे मुंह लटका रहा नाल के बल बूते ,
गंद से लथपथ पुतला मिट्टी में मिल जाना !

एक द्वार से उत्पन्न नो द्वार के दर्शन ,
रोता भूखा प्यासा पुतला मिट्टी में मिल जाना !

दांत नहीं दूध मिला मां के स्तन से ,
बिना दांत आया पुतला मिट्टी में मिल जाना !

आये दांत दलिया मिला पतला तरल पानी जेसा ,
बावन वीर बत्तीसी पुतला मिट्टी में मिल जाना !

लंगोटी वस्त्र लिबास रेशमी मख़मली ऊनी सूती मलमल ,
कफ़न से ढका पुतला मिट्टी में मिल जाना !

आवा-गमन का एक रास्ता राजा रंक ‘कागा’
राख ख़ाक होगा पुतला मिट्टी में मिल जाना !

तरस-हंसी

तरस आता हमें दो कोड़ी के लोगों पर ,
हंसी आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा चली आई उच्च निम्न ,
दया आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

राज होता राजा का प्रजा भूखी प्यासी उदास ,
लाज आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

रानी के पेट से जन्म लिया राजा होता ,
गुस़्स़ा आता हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

अंधेर नगरी चरबट राजा टक्के सेर भाजी खाजा !
शर्म आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

जिसकी लाठी उसकी भैंस कोई न्याय निर्ण्य नहीं ,
ह़य्या आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

तराज़ू एक पलड़े दो तोलते उल्टा सीधा कर ,
ठठोली आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

बद नियत के लोग नफ़रत की आग सुलगाते ,
लानत आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

ग़ुलाम बन ग़ुज़ारा जीवन ग़ैरों का करते बकवास ,
नर्मी आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

हम कोई राजा महाराजा नहीं दो कोड़ी के ,
ख़ुशी आती हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

आख़िर सबको ख़ाक होना ग़रीब चाहे अमीर ‘कागा
प्यार आता हमें दो कोड़ी के लोगों पर !

जायज़-नाजायज़

जायज़ को नज़र आता नज़ारा निहायत नफ़ीस़ ,
नाजायज़ को नज़र आता नज़ारा निहायत ख़सीस !

नज़र नज़़रिये में फर्क़ नज़र आता मुख़तल्फ़ ,
अच्छे इंसान को नज़र आता ग़रीब ग़नी रईस !

जानदार इंसान होता एहतराम से लबरेज़ लबालब ,
शानदार इंसान को नज़र आता अजनबी अ़ज़ीज़ !

नादान करता नुक़्ता-चीनी शरीफ़ शख़्स़ में ,
नालायक़ इंसान को नज़र आता ख़ुदार ख़बीस !

नेकी कर दरिया में डाल आसान ज़रिया ,
नेक इंसान को नज़र आता ग़रीब क़रीब !

गै़र ख़ानदान को आता ग़ुस्स़ा काम्याबी पर ,
बुरे इंसान को नज़र आता अंदाज़ अ़जीब !

ख़ून खोल उबल जाता नाकाम का ‘कागा’
आला इंसान को नज़र आता रसूख़ रकी़ब !

दोहरा

इ़ंसान बनकर जियो दोहरा बनकर नहीं,
इंसान बनकर जियो मोहरा बनकर नहीं!

चमक दमक खनक चका चौंध देख ,
इंसान बनकर जियो कोहरा बनकर नहीं !

नदियां बहती समु़ंदर की ओर अजनबी ,
इंसान बनकर जियो गेहरा बनकर नहीं !

बारिश आती मौसम पर होती हरियाली ,
इंसान बनकर जियो स़ेह़रा बनकर नहीं !

चलती का नाम गाड़ी खड़ी खटारा ,
इंसान बनकर जियो ठहरा बनकर नहीं !

गोरा काला का फ़र्क़ नही रखना ,
इंसान बनकर जियो चेहरा बनकर नहीं !

आस्तीन के सांप बनकर मिलेंगे लफंगे ,
इंसान बनकर जियो सपेरा बनकर नहीं !

एरे ग़ैरे नथू ख़ेरे चापलूस चुग़ल ,
इंसान बनकर जियो लुटेरे बनकर नहीं !

नक़ाब मुंह पर लगाये सफ़ेद पौश ,
इंसान बनकर जियो पेहरा बनकर नहीं !

चांद छिप जाता बादलों के पीछे ,
इंसान बनकर जियो अंधेरा बनकर नहीं !

सिहर सु़बह सवेरा बनकर जीना ‘कागा’
इंसान बनकर जियो बहरा बनकर नहीं !

पलायन

सब कुछ छोड़ आये साथ लाये संस्कार ,
घर घाट छोड़ आये साथ लाये संस्कार!

इकहतर की लड़ाई भारत पाक के बीच ,
खेत खलियान छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

कच्चे पक्के मकान चौरे कुढ़ खुड ओतारे ,
ज़मीन सीमाडा़ छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

अफ़रा तफ़री मची जान बचाने की जुगत ,
सगे सबंधी छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

धंंधा दुकान व्यापार मंदिर माड़ी गांव गवाड़ी ,
सैढ़ा गौचर छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

तळा तालाब बेरियां तली डेहरी धोरा धरती ,
माल मवेशी छोड़ आये साथ लाये संस्कार,!

पीढ़ी दर पीढ़ी अड़ोस पड़ोस संगति साथी ,
रिश्ते नाते छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

उधार पैसे हास़ल वस़ूली लेन देन क़र्ज़ ,
लेखा जोखा छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

अर्द्ध रात्रि को ह़मला गोले बरसते देखे ,
चल अचल छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

दिसम्बर में दहशत फैली ढाट में ढिंढोरा ,
ग़मगीन गलियां छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

खेल खेले कबडी गुली डंडा बिलोर ‘कागा’
अपने सपने छोड़ आये साथ लाये संस्कार !

मह़सूस

दर्द देख नहीं सकते मह़स़ूस होता है ,
स्वाद देख नहीं सकते मह़सूस होता है !

प्यार नफ़रत का कोई चेहरा नहीं होता ,
शक्ल स़ूरत नहीं होती मह़सू़स होता है !

ख़ुशबू होती फूलों में अलग अंदाज़ राज़ ,
रंग रूप नहीं होता मह़सूस होता है !

भूख प्यास नींद की छाया नहीं देखी ,
जब सताये तड़पाये तब मह़सूस होता है !

रोशनी कहां से आती कहां चली जाती ,
जब उजाला अंधेरा होता है महसू़स होता है !

काम क्रोध मोह लालच की छवि नहीं ,
कहां से टपक आते मह़सूस होता है !

मन बुद्ध चित्त का चित्र नहीं ‘कागा’
सांसें आती जाती का मह़सूस होता है !

बुराई बराबरी

बुरे करते बुराई बराबरी नहीं कर सकते ,
बुरे करते बकवास बराबरी नहीं कर सकते !

त़ौर त़रीक़ा सलीक़ा अदब आबरू एहतराम नहीं ,
बुरे होते बदतरीन बराबरी नहीं कर सकते !

बात का बतड़ंग बना देते बातें में ,
बुरे होते बदमाश बराबरी नहीं कर सकते !

गधे घोड़े नहीं बनते गंगा में नहाये ,
बुरे होते बेकार बराबरी नहीं कर सकते !

तरक़्क़ी देख तकलीफ़ होती आग ह़सद की ,
बुरे होते बेईमान बराबरी नहीं कर सकते !

ख़ुद कुछ नहीं करते बनते राह रोड़े ,
बुरे होते बेशऊर बराबरी नहीं कर सकते !

नीचा दिखाने की करते नौटंकी शरीफ़ को ,
बुरे होते बेज़मीर बराबरी नहीं कर सकते !

चुग़ल चापलूस चाटूकार बन चाटते तलवे पराये ,
बुरे होते बेशर्म बराबरी नहीं कर सकते !

बात दर बात करते बहस़ बेतुकी ‘कागा’
बुरे होते बेवफ़ा बराबरी नहीं कर सकते !

आवाज़ बन

ग़रीब नवाज़ बन बेज़ुबान की आवाज़ बन,
बंदा जांबाज़ बन बेज़ुबान की आवाज़ बन !

बेसहारों का सहारा मददगार बन कर मदद ,
नतीजा मिलेगा शानदार बेज़ुबान की आवाज़ बन !

इंसान बनाया मालिक ने होश ह़वास़ सलामत ,
उस़ूल अख़लक़ इंसानियत बेज़ुबान की आवाज़ बन !

माज़ूर यतीम मजबूर का कोई मुह़ाफ़ज़ नहीं ,
रह़मो कर्म कर बेज़ुबान की आवाज़ बन !

बंद मुठ्ठी आये है ख़ाली हाथ जायेंगे ,
दया बड़ी दोलत बेज़ुबान की आवाज़ बन !

अंदाज़ बदल अपना इरादा अरमान रख नेक ,
झांक देख गिरेबान बेज़ुबान की आवाज़ बन !

क़दम दर क़दम करते गुनाह स़वाब कर ,
तराज़ू में तोल बेज़ुबान की आवाज़ बन !

लेखा जोखा रखने वाला ओर कोई है ,
ह़िस़ाब किताब चुकुतू बेज़ुबान की आवाज़ बन !

सांसों की गिनती तक याद रखता पर्वरदगार ,
बिना क़लम कापी बेज़ुबान की आवाज़ बन !

चींटी की चलने की आहट सुनता ‘कागा’
मा़ंगी गई मन्नत बेज़ुबान की आवाज़ बन !

शर्द ऋतु

आई शर्द ऋतु लोटी बेदर्द ऋतु ,
आई हम दर्द सिर दर्द ऋतु !

पोष माघ का मास करता उदास ,
ओढ़ शाल दुशाल लोटी बेदर्द ऋतु !

हाड कांप सांसें हांफ रही हाये ,
बढ़ी सर्दी बेदर्दी लोटी बेदर्द ऋतु !

करते दांत कट कट होती धूजणी ,
मुठ्ठियां भींच खींच लोटी बेदर्द ऋतु !

अलाव जलाया आग का तापे हाथ ,
ठंड से ठिठुरे लोटी बेदर्द ऋतु !

खाने को मन ललचा पकोड़ा कचोरी ,
गर्मा गर्म नर्म लोटी बेदर्द ऋतु !

रजाई में सुबक दुबक गये चुपके ,
पहना स्वीटर कोट लोटी बेदर्द ऋतु !

शीत ऋतु में होती शादियां ‘कागा’
बजती मधुर शहनाई लोटी बेदर्द ऋतु !

राजनीति के रंग

राजनीति के रंग इंद्रधनुषी सुंदर सलोने ,
कूटनीति के ढंग विद्विषी सुंदर सलोने !

साम दाम दंड भेद चार चरण ,
चलते क़दम दर क़दम सु़दर सलोने !

दांव पेच चलते शत़रंज के खिलाड़ी ,
अनाड़ी क्या जाने राज़ सुंदर सलोने !

ताश का खेल भी अजीबो ग़रीब ,
इक्का राजा रानी ग़ुलाम सुंदर सलोने !

लोक तंत्र में बंदे गिने जाते ,
मर्द नामर्द किन्नर नहीं सुंदर सलोने !

काले गोरे सांवले सब एक समान ,
अमीर ग़रीब पीर फ़क़ीर सुंदर सलोने !

शीश कटे धड़ लड़े दौर गया ,
वोट की चोट बुरी सुंदर सलोने !

बेल्ट पैपर बदला ईवीएम का ज़माना ,
उंगली पर रंग स्याही सुंदर सलोने !

उंगली अंगूंठा की रेखाऐं कम्प्यूटर ‘कागा’
आधार पैन कार्ड पूछते सुंदर सलोने !

राजस्थानी

राजस्थान की एक मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को,
राजस्थान बोला सांगो-पांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को !

मारवाड़ मेवाड़ ढू़ंढाड़ मेवात शेख़ावटी सबकी भाषा एक सरीखी
जनता जनार्दन की मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को !

पश्चमी सीमा के ज़िला बाड़मेर जेसलमेर बीकानेर गंगा नगर
दिलो दिमाग़ से मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को !

जालोर सिरोही पाली जोधपुर नागौर अजमेर उदयपुर चित्तोड़ गढ़
कोटा बूंदी भरतपुर की मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को!

भीलवाड़ा बांसवाड़ा डूंगरपुर अलवर दौसा चूर सीकर झूंझनू जयपुर
हनुमानगढ़ करोली की मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को!

‘कागा’ कोटपुतली सहित राजस्थान के बड़े कस्बे करते निवेदन
आम जनता की मांग मिले मान्यता राजस्थानी भाषा को!

बेटी

बेटी बाबुल की चहकती ठुमकती चुलबुली चंचल चिड़िया ,
बेटी मायड़ की महकती बहकती मख़मली ग़ज़ल गुड़िया !

बेटी घर आंगन की आन बान शान मर्यादा गरिमा ,
बिना बेटी घर आंगन की आभा अधूरी गरिमा !

बेटी उड़ जाती फुर्र कर बिना पंख पर ,
बेटी का नहीं होता अपना कोई ज़ाती घर !

बेटी पराया धन किसी ओर अजनबी की अमानत
बाबुल ठहरे चंद रोज़ की ज़रूर ज़़रा ज़मानत !

बड़े नाज़ नख़रे से लालन पालन करता शानदार ,
हर चाहत करता पूरी नेक नियत से जानदार !

डोली सजी बजी शहनाई चली ससुराल सज धज ,
मायके से होती विदाई जुदाई ससुराल सज धज !

रिश्ते नाते निभाती लुभाती तन मन वचन से ,
नज़दीक दूर मंझोले निभाती लुभाती वचन से !

मां बेटी बहिन भूआ भतीजी भाभी ननंद बन ,
बहु सास देवरानी जेठानी पोती दोहिती संबंधन बन !

पीहर का घर मां बाप भाई का कहते ,
ससुराल का घर सास ससुर पति का कहते !

‘कागा’ दर्द होता बाबुल के करता जब विदाई ,
डोली मायके से अर्थी उठती ससुराल से जुदाई !

बाबा अम्बेडकर

आज छह दिसम्बर बाबा अम्बेडकर का महिपरिनिर्वाण दिवस ,
शत शत नमन महान आत्मा को महापरिनिर्वाण दिवस !

भारत संविधान के शिल्पकार को बारम्बार प्रणाम करें ,
वंचित बहुजन समाज को दिया अधिकार प्रणाम करें !

नारी के मुक्ति दाता किसान मज़दूर के मसीहा ,
ग़रीब ग़मगीन ग़ाफ़िल बेसहारा मोह़ताज लोगों का मसीहा !

रामजी सकपाल भीमा बाई का लाल चौदहवां रतन ,
नाम रोशन किया देश विदेश में भारत रतन !

चौदह अप्रेल का चमका पूर्ण मास का चांद ,
दुनिया में तहलका मचा चमका चौदहवीं का चांद !

शिक्षा दीक्षा में बहु-आयामी सोया समाज जगाया ,
दुत्कारे गये स़दियों पुराना समाज अपने गले लगाया !

नीले गगन के नीचे गूंजायमान करे उनका नारा ,
शिक्षित बनो संगठित रहो संघर्ष करो का नारा !

‘कागा’ हम सबका अहम फ़र्ज़ नहीं बनें लाग़र्ज़ ,
कारवां की करें रफ़्तार तेज़ नही बनें लाग़र्ज़ !

नाग-नागिन

नाग निकल गया लकीर को अब फ़ालतू लाठी मारते ,
नागिन निकल गयी लकीर को अब फ़ालतू लाठी मारते !

जब तक सांप बेठा था कुंंडली मार काला कोबरा ,
सांसे थम चुकी थी घुटन अब फ़ालतू लाठी मारते !

नाग पंचमी के दिन दूध पिलाया भर कटोरा लबालब ,
मन्नत मांगी मुराद मुकमल वास्ते अब फ़ालतू लाठी मारते !

नाग पंचमी आती साल में एक बार होती पूजा ,
नेता आते पांच साल बाद अब फ़ालतू लाठी मारते !

कर जाते वादे झूठे अनूठे भूल भटक लटक कर ,
गिड़गिड़ा हड़बड़ा कर हर बार अब फ़ालतू लाठी मारते !

नई बोतल शराब पुरानी बदल कर चेहरा चरित्र चाल ,
हाथा जोड़ी पैरों पर पगड़ी अब फ़ालतू लाठी मारते !

थोथी कोरी घोषणा करते चिकनी चुपड़ी बातें बहुत ‘कागा’
दो पैग दारू का मिला अब फ़ालतू लाठी मारते !

संदेश

सुन संदेश प्यारे यह देश हमारा है ,
सुन संदेश दुलारे यह देश हमारा है।

अपनी जान करें क़ुर्बान आंच नहीं आये ,
मिट्टी से करें तिलक देश हमारा है !

जल जंगल जानवर जीव जंतु ज़र ज़मीन ,
पहाड़ मैदान धोरा धरती देश हमारा है !

कल कल करती नदियां बहती समुंदर ओर ,
झुक कर चलते झरने देश हमारा है !

ख़ेत खलियान बाग़ बग़ीचे सर सब्ज़ माह़ोल ,
चहक बहक करती चिड़ियां देश हमारा है !

मोर नाचे शोर मचाये गर्जे बादल बिजलियां। ,
बरस रही बारिश बूंदें देश हमारा है !

पणिहारी भरती पानी पनघट पग बाजे पायल ,
करती दिल को घायल देश हमारा है !

गोरी घू़ंघट में झपट लट बिखरी काली ,
लब्बों पर लाल लाली देश हमारा है !

माली मद मस्त मुस्काये चुन कर फूल।
बुलबुल तोता मीना तितली देश हमारा है !

किसान रख हल कंधे पर चला खेत ,
जोते बैल बजे घुंघरू देश हमारा है !

अनाज उत्पन्न करे अन्नदाता दिन रात ‘कागा’
करे पेट पूर्ति सबकी देश हमारा है !

जय श्री राम

जय सिया राम जय श्री राम,
रोम रोम बसे जय श्री राम !

आवा-गमन बोलो राम नाम एक ,
आती जाती सांसें जय श्री राम !

राम नाम की रट घट भीतर,
बाहर गूंजे गगन जय श्री राम !

मन बुद्धि चित्त विवेक नेक नियत ,
नीति रख पवित्र जय श्री राम !

आत्मा अमर अजर अटूट अटल अनंत ,
राम नाम रटंत जय श्री राम !

सु़बह शाम आठों याम राम नाम ,
राम नाम जीवन जय श्री राम !

दस द्वार पच्चीस खिड़की बना मंदिर ,
अंदर बिराजे आप जय श्री राम !

शब्द रूप रस गंध स्पर्श ‘कागा’
मोह माया लोभ जय श्री राम !

विश्व द्वियांग दिवस

विश्व द्वियांग दिवस पर दिलो जान से बधाई ,
विश्व द्वियांग दिवस पर दिलो दिमाग़ से बधाई !

समाज का प्रमुख अंग द्वियांग जन मन मस्त ,
ह़ोस़ला अफ़ज़ाई कर दें दिलो जान से बधाई !

दीन हीन भावना नहीं नियत से करें सहयोग ,
उत्साह वृद्धन जारी रहे दिलो जान से बधाई !

प्रकृति की देन मगर मानसिक रूप से सम्बल ,
प्रबुद्ध जन का कर्तव्य दिलो जान से बधाई !

विश्व द्वियांग दिवस पर कर प्रदर्शन शक्ति दिखायें ,
द्वियांग की मांग पूर्ण दिलो जान से बधाई !

अपना जायज़ ह़क़ मांगते मुफ़्त ख़ेरात नहींं ‘कागा’
हमदम हरदम हमदर्द बनो दिलो जान से बधाई !

ज़िंदगी

ज़िंदगी जीना है ज्वाला बन जीयो धूंआ बन नहीं ,
ज़िंदगी जीना है उजाला बन जीओ धूंआ बन नहीं !

ज़िंदगी का सफ़र आसान करने की कोशिश कर बंदा ,
ज़िंदगी जीना है त़ूफ़ान बन जीओ धूंआ बन नहीं !

रोशन करो दिलो दिमाग़ अंधेरे को करो चकना चूर ,
ज़िंदगी जीना है आफ़ताब बन जीओ धूंआ बन नहीं !

चांदनी की चमक दमक से होती अंधेरी रात रोशन ,
ज़िंदगी जीना है मेहताब बन जीओ धूंआ बन नहीं !

लाखों सितारे टिम टिमाते चांद की ओट में चमकीले ,
ज़िंदगी जीना है मेह़राब बन जीओ धूंआ बन नहीं !

मह़फ़ल में होते आला दानिश दबंग दलेर वज़ीर सफ़ीर ,
ज़िंदगी जीना है जनाब बन जीओ धूंआ बन नहीं !

अमीर ग़रीब पीर फ़क़ीर की दरार मिटती नहीं ‘कागा’
ज़िंदगी जीना है नवाब बन जीओ धूंआ बन नहीं !

पीड़ा

अपने बेठ जाते पराई पेहलू में पीड़ा होती है ,
अपने बेठ जाते ग़ैर गौद में पीड़ा होती है !

अपनों के लिये आंसू बहाये आंखों में ज़ार ज़ार ,
अपने बेठ जाते अजनबी बांहों में पीड़ा होती है !

तकलीफ़ आने नहीं दी ज़ोर ज़ुल्म सितम बर्दाशत किये ,
पराये पैर पकड़ कर नाक रगड़े पीड़ा होती है !

मोह़ताज होने नहीं दिया ह़ोस़ला अफ़ज़ाई करते रहे हरदम,
ग़मगीन गिड़गिड़ा कर तलवे चाटते देख पीड़ा होती है !

हाथों में जकड़ी हथकड़ी पैरों में बांधी बेड़ियां तोड़ी,
दोबारा बन गये बंदी ग़ुलाम तब पीड़ा होती है !

जंग जारी रख जद्दो-जहद की दिलो जान से ,
बेवफ़ा जान लुटा रहे ग़ैरों पर पीड़ा होती है !

आंच नहीं आने दी आग की लपटों में झुलसे ,
हमें अकेला झौंक गये अलाव में पीड़ा होती है !

भूखे प्यासे पैदल चल मंज़िल मक़स़द तक पहुंचे ‘कागा’
पराये आग़ोश में उदास बेठे देख पीड़ा होती है !

बेवफ़ा

चुपचाप चुपके मंझधार में छोड़ चले गये ,
चुपचाप चुपके अधरझूल में छोड़ चले गये!

भरोसा था भरपूर रिश्त नाता निभाने का ,
घनी झाड़ी बबूल में छोड़ चले गये !

अपने ख़ून पसीने से सींची बंजर को ,
खिले फूल शूल में छोड़ चले गये !

नालायक़ नादान को लायक़ बनाया क़ाबिले कमाल ,
अलमबरदार अपने उस़ूल में छोड़ चले गये !

अपनी जान जोखिम में डाल जान बचाई ,
फ़र्जी निकले फ़ुज़ूल में छोड़ चले गये !

बावफ़ा का बहाना बना कर आये बेवफ़ा ,
कहने लगे भूल में छोड़ चले गये !

घर आये मेहमान बनकर मेरे आंगन ‘कागा’
धकेल बाहर धूल में छोड़ चले गये !

प्रेम

दो नैनों का मिलन जब प्रेम होता है ,
दो दिलों का मिलन जब प्रेम होता हैं!

दो हंसों की जोड़ी जब बिछुड़ जाये अगर ,
जब दिल रोता है तब प्रेम होता है !

दिल में होती पीर नैनों टपकते जब नीर ,
पलक भीग गाल धोता है प्रेम होता हैं !

चेहरे की चमक दमक महक झनक जब ख़त्म ,
होश ह़वास़ खोता मैं तब प्रेम होता हैं !

प्रेम का प्याला पिया मीरा ने झट-पट ,
खट-पट ग़ोता है तब प्रेम होता हैं !

राधा गोरी कृष्ण काला रंग रूप भेद नहीं ,
कोई नहीं अछूता है जब प्रेम होता हैं !

सीता ने बनवास बिताया वाल्मिक आश्रम में ‘कागा’
लव कुश जन्म होता हैं प्रेम होता हैं !

नैतिकता

हम किसी के जले पर नमक नहीं छिड़कते ,
हम किसी के ज़ख़्म पर नमक नहीं छिड़कते!

हम हबीब तबीब बन करते मरीज़ की दवा ,
दवा के बदले जले पर नमक नहीं छिड़कते !

बेरोज़गार ज़रूर है मगर बेज़मीर बेशऊर बदमाश नहीं ,
हम बाज़मीर बाशऊर जले पर नमक नहीं छिड़कते !

बद-तमीज़ मिज़ाज बद अल्फ़ाज़ बोल करते चोट ,
हम सलीक़ा रखते जले पर नमक नहीं छिड़कते !

तबीब बन लफंगे नश्तरों पर लगा ज़हर घूमते ,
हम रक़ीब बन जले पर नमक नहीं छिड़कते !

हम डूबे स़नम आपको साथ लेकर त़र्ज़ पर ,
हम दोगले नहींं जले पर नमक नहीं छिड़कते !

हम ज़ख़्मी के ज़ख़्म पर मरहम लगाते हरदम ,
हम क़रीब बन जले पर नमक नहीं छिड़कते !

हम हमदर्द मददगार बन करते मदद ग़रीबों की ,
हम बेदर्द बन जले पर नमक नहीं छिड़कते !

हम बेसहारों के सहारा बनते जान-बूझ कर ,
हम बेग़ैरत बन जले पर नमक नहीं छिड़कते !

सर सब्ज़ बाग़ के सपने दिखा कर ‘कागा’
हम लुटेरे बन जले पर नमक नहीं छिड़कते !

दिल दीवाना

तेरी याद में दिल दीवाना हो गया ,
तेरे प्यार में मन मस्ताना हो गया !

दो आंखों का मिलन हुआ दूर से ,
दिल की धड़कन तेज़ तराना हो गया !

नज़रें झुका कर चले हौंठ चबा कर ,
एक लम्ह़ा की मुलक़ात अफ़साना हो गया !

आये थे दूर से सबब जाना नहींं ,
एक झलक देखी जेसे ज़माना हो गया !

ह़िजाब में मलबोस अदायें अजीबो ग़रीब रंगीन ,
दिल चुरा कर चले बहाना हो गया !

पागल हो गया दिल रोता शब रोज़ ,
क्या त़िलस्म किया दिल बेगाना हो गया !

भूख प्यास नींद अलविदा हो गई ग़ायब ,
आशिक़ माशूक़ के दरम्यान पैमाना हो गया !

लेलां मजनू हीर रांझा के सुने क़िस़्स़े ,
ज़ोर ज़बरदस्ती बेगार नहीं परवाना हो गया !

आंखों दिलों का मिलन गेहरी साज़िश ‘कागा’
अनचाहे अचानक शम्मा जली आशियाना हो गया !

महंगाई

बेरोज़गारी बढ़ रही बेशुमार मचा बड़ा बवाल ,
रंगदारी बढ़ रही बेशुमार मचा धूम धमाल!

माह़ोल मायूसी उदासी भरा जवान बद-ह़वास ,
बेरोज़गारी का आलम जीना हो गया मुह़ाल !

नक़ल ने अ़क़ल छीनी लीक होते पैपर ,
महंगाई की मार से जनता हुई कंगाल !

मसायल ह़ल नहीं होते जूं नहीं रेंगती ,
सच्च सुनते नहीं कोई चुग़ल माला माल !

घुट घुट कर मर रहे ग़रीब ग़मगीन ,
अमीर के सामने कभी नहीं गलती दाल !

कूंए में भांग पड़ी पीते पानी एक ,
कुसूर नही किसी का चलती नहीं चाल !

चूड़ियां उतारी जाती मंगल सूत्र सुहाग निशनी ,
इम्तहान में गड़बडी होती खड़े हुए सवाल !

आटा चावल दाल मिर्च नमक साग सब्जी ,
ओढ़नी लहंगा महंगा जिंदगी बन गई जंजाल !

ज़हर खाये मर जाना भी मुश्किल ‘कागा’
ज़हर में मिलावट फेल रहा मकड़ जाल !

पैग़ाम

सुन मेरे प्यार का पैग़ाम,
हम तेरे प्यार का पैग़ाम!

प्यार करना कोई गुनाह नहीं ,
दिल देना प्यार का पैग़ाम !

दिल की धड़कनें कह देती ,
धीमी आवाज़ प्यार का पैग़ाम !

लब लरज़ जाते आंखें भीगी ,
आंसू उमड़े प्यार का पैग़ाम !

दांतों से कटते होंठ ख़ामोश ,
सिसक जाता प्यार का पैग़ाम !

सोते रात गुज़र जाती रोते ,
नींद ग़ायब प्यार का पैग़ाम !

बिना जान पहचान अपना होता ,
उबाल उफान प्यार का पैग़ाम !

प्यार दो दिलों का मिलन ,
तोड़पता रहता प्यार का पैग़ाम !

प्यार में कोई अजनबी नहीं ,
होती हलचल प्यार का पैग़ाम !

दूरी नहीं क़रीब आओ ‘कागा’
समा जाओ प्यार का पैग़ाम !

मां बाप

मां बाप अपनी संतान के ईश्वर होते है ,
मां बाप अपनी ओलाद के ईश्वर होते है !

जन्म दाता निर्माता भाग्य विधाता करते लालन पालन ,
दुख सुख में साथ संरक्षक ईश्वर होते है !

बच्चपन से रखते ख़्याल ख़ुश रखने का हरदम ,
खान पान दर्द पीड़ा हरण ईश्वर होते है !

मां तपती तड़पती चूल्हा-चौका का कर काम ,
पिता बहाता पसीना तपिश में ईश्वर होते है !

शिक्षा दीक्षा संस्कार का सृजन करते देख सपने ,
अपने से ऊंचा बनाना चाहते ईश्वर होते है !

हर ज़रूरत का रखते ध्यान कोर कसर नहीं ,
करते ख़्वाहिश पूरी कमी नहीं ईश्वर होते है !

होते बुढ़े बुज़ुर्ग रखते सेवा चाकरी की आशा ,
देते दिल से दुआयें भरपूर ईश्वर होते है ,

कराहते किसी रोग में पलंग पर पड़े ‘कागा’
करते नहीं कभी गिला शिक्वा ईश्वर होते है !

कसोटी

इंसान की अस़ली परख पहचान अपना व्यवहार,
चेहरे की चमक दमक नहीं अपना व्यवहार !

सोन पीतल दोनों का पीला रंग रोग़न ,
कसोटी पर जो खरा उतरे अपना व्यवहार !

हंस बगुला दोनों स़ूरत मूर्त लगते सफ़ेद ,
हंस चुगे मोती बगुला मछली अपना व्यवहार !

कोयला कस्तूरी दोनों एक जेसा काला रंग ,
कस्तूरी दे सुगंध कोयला कालिख अपना व्यवहार !

मिश्री फिटकड़ी रंग रूप समान तास़ीर अलग ,
फिटकड़ी डली मिश्री में फ़र्क अपना व्यवहार !

कंठ एक बोल मधुर कड़वा कोयल ‘कागा’
रस धारा अमृत बरस रही अपना व्यवहार !

बकरे की मां

बकरे की मां कब तक ख़ेर मनायेगी,
आज नहीं तो कल गर्दन कट जायेगी !

दहश्त का दौर है तशदुद शदीद जारी,
खींचा तानी नहीं वरना चदरिया फट जायगी !

अनहोनी नहीं हो जाये अनसुनी अनकही कभी ,
तलवार लटकी है धारदार हथियार हट जायेगी !

हवा का झौंका आता कभी आंधी त़ूफ़ान ,
आती हुई मुस़ीबत लह़ज़े में मिट जाये गई !

दुनिया दोगली हर क़दम पर दग़ा बाज़ ,
हर आफ़्त फ़िलह़ाल चुटकी में निप्ट जायेगी !

कसाई बन बेठे हर कोने पर ‘कागा’
किस पर करें भरोसा क़ीमत घट जायेगी !

सुईंया मेला

चौहटन की चमक निराली आया सुईंया मेला. ,
चौहटन की दमक निराली आया सुईंया मेला !

पोष मास तिथि अमावश वार सोम शुभ ,
चौहटन की महक निराली आया सुईंया मेला !

व्याप्ति योग मूल नक्षत्र पांचों का संयोग ,
चौहटन की चहक निराली आया सुईंया मेला !

सुईंया की छाप ऊपर समस्त तीर्थों से ,
चौहटन की खटक निराली आया सुईंया मेला !

मरू कुंभ नाम अनोखा जहां पहाड़ी धोरा ,
चौहटन की मटक निराली आया सुईंया मेला !

विष्णु पगला धाम धरा कपालेवर भगवान की ,
चौहटन की लटक निराली आया सुईंया मेला !

चीपल नाड़ी जहां खेले पांचों पांडव भाई ,
चौहटन की झलक निराली आया सुईंया मेला !

पांडवों की तपो भूमि द्वापुर युग से ,
चौहटन की चटक निराली आया सुईंया मेला !

शुभ महूर्त महोत्सव दर्शन होता किसी को ,
चौहटन की खनक निराली आया सुईंया मेला !

फूटती जल धारा झरने से चमत्कारी ‘कागा’
चौहटन की झनक निराली आया सुईंया मेला !

नेक इंसान

नेक इंसान बन इंसानियत को बनाये रख,
एक इंसान बन ख़ास़ियत को बनाये रख !

क़ुदरत ने अशरफ़ अल मख़्लूक़ाय बनाई शानदार ,
नेक इंसान बन शख्सियत को बनाये रख !

इंसान बनना कोई मामूली वाक़्या नहीं नादान ,
नेक इंसान बन ह़ेस़ियत को बनाये रख !

ख़ानदानी का ख़ुमार ख़ूबी का ख़ुलास़ा कर ,
नेक इंसान बन वस़ियत को बनाये रख !

वालदीन के वारिस़ हो ओलाद फ़ोलाद जैसा ,
नेक इंसान बन नस़ीयत को बनाये रख !

मग़रूर बन ग़ुरूर नहीं कर बद गुमान ,
नेक इंसान बन अकस़रियत को बनाये रख !

ज़माना ज़ईफ बड़ा कमज़ोर कू़अत नहीं ‘कागा’
नेक इंसान बन फ़ज़ीलत को बनाये रख !

चित्त चोर

चित्त चोर लुटेरे कर चोरी शाहूकार बन बेठे ,
दिल चोर लुटेरे कर चोरी ईमानदार बन बेठे !

बिना कुछ छूए नज़रें मिला कर लूट लिया ,
बड़ी चालाकी से कर चोरी ख़बरदार बन बेठे !

हाथ की स़फ़ाई का हुनर मदारी का खेल ,
चश्मदीद गवाह नहींं कर चोरी ख़ुदार बन बेठे!

दिल को का़बू कर रखा था सीने में ,
नज़रें झुकी रही रह गई चौकीदार बन बेठे !

दिल के बदले दिल देना लेन देन दुनियादारी ,
कर चोरी चुप चाप शाही सरदार बन बेठे!

दिल एक बेश-क़ीमती त़ोह़फ़ा का तोल मोल नहीं,
ठुकराने का इरादा कर ख़ुद ख़रीदार बन बेठे !

दिल खिलोना नहीं दिल को बहलाने वास्ते ‘कागा’
तोड़ दिया एक झटके में ग़दार बन बेठे !

संकरी गली

गांव की संकरी गली हम टकरा गये ,
आमने सामने गुज़रे ज़रा हम टकरा गये!

जिस्म छुआ ख़बरदार बन मामूली एह़सास हुआ ,
कोई ह़ादस़ा ह़रकत नहीं हम टकरा गये !

वो निकले ह़िजाब में लिप्ट नज़रें झुकी ,
ह़िफ़ाज़त होने के बावजूद हम टकरा गये !

दिल लरज़ गये हलचल हुई ख़ामोश रहे ,
कोई गिला शिक्वा नही हम टकरा गये !

पल्लू आया ज़द में कांटों के थोड़ा ,
फट गया हट गया हम टकरा गये !

सांसें फूली दम घुट गया ग़ुस्स़ा नहींं ,
शुक्रिया संजीदा रहे दोनों हम टकरा गये !

एक झलक ने झकझोर दिया दिल ‘कागा’
बाल बाल बच गये हम टकरा गये !

नशा-ख़ोर

नशा बन गया नासूर लाइलाज बीमारी ,
विषबैल बन बढ़ रही लाइलाज बीमारी !

चरस गांजा भांग आफ़ीम बीड़ी सिग्रेट ,
ह़ुक्क़ा चिल्म स़ुल्फ़ा ज़र्दा लाइलाज बीमारी !

डोडा नास नस्वार स्मेक हीरोईन एमडी ,
प्रेम सत्ता शराब जवानी लाइलाज बीमारी !

लत लग जाये सेवन करने से,
मुंह लगे छूटे नहीं लाइलाज बीमारी !

जूआ सट्टा चोरी चकोरी लूट पाट, ,
नक़ब ज़नी ज़ोरी ज़ना लाइलाज बीमारी!

वहम अहम गुमान शक का शिकार ,
दवा दारु नुस्ख़ा नहीं लाइलाज बीमारी !

आबाद घर बर्बाद बेकार हो गये ,
ख़ानदान ख़त्म हो गये लाइलाज बीमारी !

बाज़मीर बेज़मीर बाशऊर बेशऊर बन गये ,
बाईमान बेईमान बावफ़ा बेवफ़ा लाइलाज बीमारी !

ख़ून के रिश्तों का ख़ून ख़राबा ,
ख़ून रेज़ी सरे आ़म लाइलाज बीमारी !

इज़्जत आबरू का क़तले आ़म ‘कागा’
कोयले ने कालिख छोड़ी लाइलाज बीमारी !

ह़सीन सपने

मूंगेरी लाल के ह़सीन सपने देख रहे हो ,
ख़ुद पर भरोसा नहीं सपने देख रहे हो !

पराई मेह़नत पर जलन होती बड़े आलसी बन ,
मुफ़्त में मिल जाये सपने देख रहे हो !

बिल्ली को सपने में सपने में दिखती अंतड़ियां ,
नींद खुलते होती नदार्द सपने देख रहे हो !

ख़ून पसीना बहाया तपती धूप दुपहरी में हरदम ,
ह़क़ मालकाना का बेवजह सपने देख रहे हो !

ख़ेरात खाकर ज़िंदगी बसर की कटोरा थाम हाथ ,
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे सपने देख रहे हो !

शेख़ चिल्ली के ख़्याल ख़ुश करते दिल हमेशा ,
पराया माल अपना सोच सपने देख रहे हो !

ह़सद की आग भभक रही ज्वाला लपटें बन ,
अपना बदन जला कर सपने देख रहे हो !

खुला था मैदान खेले नही तमाश बीन बने ,
पराई जीत पर ग़म सपने देख रहे हो !

ग़फ़लत ख़ुद की गुस़्स़ा करते ग़ैरों पर ग़ज़ब ,
सियासी रोटियां सेकने के सपने देख रहे हो !

बिना कोशिश कामयाब बन जाये आसन नहीं ‘कागा’
पराये सिर तोहमत मढ़ सपने देख रहे हो !

नर-मादा

नर मादा की जोड़ी ऊपर वाले ने बनाई ,
कहते लोग आकाश पर ऊपर वाले ने बनाई !

मादा को मर्द चाहिये नामर्द नादान बेदर्द नहीं ,
मादा छोड़ मायका चले ससुराल मर्द बेदर्द नहीं !

सिर दर्द मर्द की वजह़ से नारी बदनाम ,
मिल जाये मर्द हमदर्द करे रोशन नारी नाम !

नारी मर्द वास्ते छोड़ दे लाज शर्म ह़य्या ,
मां बाप पहचान करे ख़त़्म लाज शर्म ह़य्या !

भाग कर चली जाये दोड़ प्रेमी के संग ,
करती प्रेम विवाह मन मर्ज़ी प्रेमी के संग !

नारी शील सत्ती सीता संतोष की प्रति मूर्ति ,
अग्नि परीक्ष में खरी उतरे करे क्षति पूर्ति !

नारी का नहीं कोई वर्ण वर्ग जाति धर्म ,
नारी का होता मात्र एक मूल मासिक धर्म !

नारी नाम समर्पण अर्पण चाल चेहरा चित्र चरित्र ,
नारी घर आंगन की रंगोली रूप पावन पवित्र !

‘कागा’ कुल वृद्धि नारी से सृष्टि की रचना ,
नारी नर की जननी नारी नर की रचना !

भाई-भाई

हम भाई भाई कोई ग़ैर नहीं ,
ख़ून का रिश्ता कोई ग़ैर नहीं!

राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन चार भाई ,
पुत्र मोह जुदाई कोई ग़ैर नहीं !

कौर्व पांडव करण एक कुल महान ,
महा भारत लड़ाई कोई ग़ैर नहीं !

रावण विभीषण दोनों सगे भाई विवाद
नीति की लड़ाई कोई ग़ैर नहीं!

बाली सु्ग्रीव दोनों मां जाये विवाद ,
अनीति की अंगड़ाई कोई ग़ैर नहीं!

ज़र जोरू ज़मीन जंग की जड़,
भाई बीच भेद कोई ग़ैर नहीं!

हरण काश्यप होलिका प्रह्लाद कलेश ‘कागा’
किया सर्व नाश कोई ग़ैर नही !

शीशा

शीशा थे सुंदर टूट टुकड़े हो गये,
एक थे सुंदर फूट टुकड़े हो गये!

अब नज़र आता अलग मुखड़ा छोटा सा,
बड़े थे सुंदर छूट टुकड़े हो गये!

अब उगल रहे सच्चाई बंटोगे तो कटोगे ,
आईना थे सुंदर रूठ टुकड़े हो गये !

चमक दमक खनक रौनक रुतब्बा शानो शोक्त ,
शहोरत थे सुंदर लूट टुकड़े हो गये!

राह दिखाते थे दुनिया को रहबर बन ,
नेक धे सुंदर अटूट टुकड़े हो गये!

विश्व गुरु बन दुनिया को दिखाया आईना ,
सत्य थे सुंदर झूठ टुकड़े हो गये !

मोइन जो दड़ो हड़पा हमारी सभ्यता संस्कृति,
रजपूत थे सुंदर अछूत टुकड़े हो गये !

टूट कर चकना-चुर हो गया वजूद,
सच्चे थे सुंदर सपूत टुकड़े हो गये!

हाथ हो जाते ज़ख़्मी जोड़ने में दोबारा ,
दबंग थे सुंदर दूत टुकड़े हो गये !

डंका बजता था कहते सोन की चिड़िया,
महान थे सुंदर अवधूत टुकड़े हो गये!

देर आयद दुरस्त आयद एकता नेकता ‘कागा’
मालिक थे सुंदर मज़बूत टुकड़े हो गये!

मीठा-मीठा गप

मीठा मीठा गप कड़वा कड़वा थू दुनिया दोगली ,
हींग लगे नहीं फिटकड़ी रंग चोखा दुनिया दोगली !

बिना माथा फोडी़ हाथा जोड़ी मिल जाये मुफ़्त,
जैसे सोन पर सुहागा मिले मौक़ा दुनिया दोगली!

कौन खिलाड़ी मेदान कैसा बाल बल्ला जुगल जोड़ी,
बक बक बकवास का छक्का चौका दुनिया दोगली!

चमड़ी जाये दमड़ी नहीं जाये कंजूस मक्खी चूस,
दूर देखे दम खम बेठ झरोखा दुनिया दोगली !

पिछलग्गू बन पराया इर्द गिर्द घूमता फिरे बेशक,
आ़दत से मजबूर अजब ग़ज़ब अनोखा दुनिया दोगली!

करता बातें मीठी चिकनी चुपड़ी चुप चाप चापलुस,
दोस्त बन गेहरा देता बड़ा धोखा दुनिया दोगली!

मस्का बाज़ी में बहुत माहिर करता गप गोष्ठी ,
शक नहीं हुआ नहीं रोका टोका दुनिया दोगली!

‘कागा’ से क्या लेना देना ख़ुद लेता ख़बर,
लचक जाता देख हवा का झौंका दुनिया दोगली!

शरणार्थी-सेवा

सालों की सेवा बह गई पानी में पल्लु रहे निचोड़ ,
डूबने से बच गई जान पानी में पल्लु रहे निचोड़़ !

चन्ने चबा कर भूख मिटाई प्यास बुझाई घूंट भर पानी ,
बिना बिस्तर लेटे धूल पर पानी में पल्लु रहे निचोड़!

समुंदर खारा उफान उछाल पर लहरें गिनते रहे ग़मगीन हम,
आंधी त़ूफ़ान सुनामी सहन की पानी में पल्लु रहे निचोड़!

ख़्वाहिशें ख़ूब थी बेमौत मार दी उस़ूलों की आड़ में,
दाग़ नहीं लगा दामन पर पानी में पल्लु रहे निचोड़ !

बदन पर मेला कुचेला लिबास पैवंद लगे होती हाथ सिलाई ,
पैरों में पैजार नही चप्पलें पानी में पल्लु रहे निचोड़!

मीलों दूर चल पैदल सेवा की समाज की जान से,
छाले पड़ फफोले हो गये पानी में पल्लु रहे निचोड़ !

मुह़ाल मायूस उदास माह़ोल में खिदमत ख़लक़ की हर दम ,
आंखों की औंघ गंवाई जाग पानी में पल्लु रहे निचोड़!

भूल गये लोग भलाई मलाई चाटने वाले चपलूस सिर दर्द,
नहीं था कोई धणी धोरी पानी में पल्लु रहे निचोड़!

नहीं जान पेहचान अनजान अजनबी एक अलग कूच कारवां ‘कागा’
मुहाजिर बोल करते लोग मज़ाक़ पानी में पल्लु रहे निचोड़ !

प्रकृति का पैमाना

प्रकृति का पैमाना अब तक कोई जान नहीं सकता ,
समुंदर का ख़ज़ाना अब तक कोई जान नहीं सबका !

पूर्वजों की खोज जारी आदि अतीत से चली आई ,
सृष्टि की रचना अब तक कोई जान नहीं सका !

हवा जल थल अगन गगन यह ब्रह्मांड एक पेहली ,
उत्पति से आज अब तक कोई जान नहीं सका !

पिंड ब्रह्मांड में गोत़े खाए समुंदर में डुबकी लगा,
तलहटी की गेहराई अब तक कोई जान नहीं सका !

तत्व ज्ञान को तराश तलाश खोज बीन-ख़ूब की ,
मिला नहीं नतीजा अब तक कोई जान नहीं सका !

अंतरिक्ष यात्री बन चांद सितारों की सैर की सुहानी,
उदेश्य रहा अधूरा अब तक कोई जान नहीं सका !

भूगोल खगोल का भ्रमण नव ग्रह की जांच पड़ताल ,
पूर्ण अपूर्ण ज्ञान अब तक कोई जान नहीं सका !

ऋषि मुनि तपस्वी ज्योत्षी निजोमी तस्ली नहींं कर पाये ,
आकाश पाताल की परख अब तक कोई जान नहीं सका!

‘कागा’ कल्पना की कोई सीमा नहीं तीर ओर तुका,
शून्य से शिख़र चले अब तक कोई जान नहीं सका !

जल्वा

लोग जल भुन रहे लगता जल्वा बरक़रार है,
लोग सब सुन रहे लगता जल्वा बरक़रार है!

ज़िंदा की करते लोग गिला मुर्दा का बखान,
मत़लब के यार करते ग़दार जल्वा बरक़रार है !

मुर्दा मछली चलती बहती धारा दरिया की लहर में,
ज़िंदा तेरती रफ़्तार तेज़ तर्रार जल्वा बरक़रार है !

दर्द देते दिल को अपने गै़रों का ग़म नहीं,
तस्ली नहींं करते मह़ज़ तकरार जल्वा बरक़रार है!

गुमराह होते ग़ाफ़िल लाली पोप लेते हाथ में,
बराबरी की बजाय करते बुराई जल्वा बरक़रार है!

हाथी चलता मस्त चाल कुत्ते भौंकते झुंड में ,
परवाह ज़रा नहीं रहता चौकस जल्वा बरक़रार है !

शेर राजा जंगल का कर शिकार भर पेट,
सो जाता नींद गेहरी बेफिक्र जल्वा बरक़रार है!

चाहे भूख मर जाये जूठी नहीं खाता ख़ुराक़,
मुफ़्त मांग कर नहीं भीख जल्वा बरक़रार है !

घास नहीं चरता सूखी हरी जानवरों को देख,
जब करे दहाड़ गुंजे पहाड़ जल्वा बरक़रार है!

देख बूढा मांद में सोया नहीं छेड़ ‘कागा’
शेर बड़ा शेता़न लेगा जान जल्वा बरक़रार है!

लेखक कवि

हां मैं लेखक हूं लिखता काव्य रचनायें ,
हां मैं कवि हूँ लिखता काव्य रचनायें !

हर विषय पर लिखता बेबाक सटीक सच्चाई ,
हां मैं मानव हूं लिखता काव्य रचनायें !

जीवन में घटित घटना हूबह् बयान करता ,
हां मैं ज़िंदा हूं लिखता काव्य रचनायें!

बिना राग द्वेष लाग लपेट पक्ष पाई,
हां मैं निडर हूं लिखता काव्य रचनायें !

ध्यान रखता मानसिक ठेस नहीं पहुंचे कभी ,
हां मैं इंसान हूं लिखता काव्य रचनायें !

इंसान ख़त़ा का घर ग़ल्ती हो जाती ,
हां मैं ग़ाफ़िल हूं लिखता काव्य रचनायें !

मानविय गुस्ताख़ी होती रहती क़दम दर क़दम ,
हां मैं जाहिल हूं लिखता काव्य रचनायें !

‘कागा’ क़लम मेरी कलाम आपके ह़ोस़ला बुलंद
हां मैं सचेत हूं लिखता काव्य रचनायें!

बेक़द्र

क़द्रदान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे हैं,
मेहरबान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है !

मह़फ़िल में मर्द नामी ग्रामी निहायत नुमायां ,
आलीशान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है !

हीरा परख करने वाले जोहरी नहीं कोई ,
इंसान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है !

बातें करते बड़ी झड़ी झूठ झांसा की ,
पेहलवान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है !

दावत देकर मजलिस जमाई एहतमाम कर नायाब ,
मेज़बान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है !

मय ख़ाना ख़ाली नहीं शराब नहीं साक़ी,
मेहमान कहा़ गये यहां बेक़द्र बेठे है !

पराई शान में कशीदा पढ़ने वाले काफिर,
अरमान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे है!

बिना इलम के आलिम उलेमा आला ‘कागा’
सुलेमान कहां गये यहां बेक़द्र बेठे हैं!

वो वक़्त कब आयेगा

वो वक़त कब आयेगा जब अमीर ग़रीब साथ बेठेंगे एक खाट पर,
वो समय कब आयेगा जब शाह गदा साथ बेठेंगे एक टाट पर !

जब आते चुनाव दरकार होती वोटों की ग़र्ज़ फ़र्ज़ निभाते बराबरी का,
वो वक़्त कब आयेगा जब मुर्शद मुरीद साथ बेठेंगे एक पाट पर !

ऊंचे आसन पर बेठ देते प्रवचन गूढ़ ज्ञान उपदेश गीता पुराण का,,
वो वक़्त कब आयेगा जब महंत श्रोता साथ बेठेंगे एक टाट पर!

भगवान ने इंसान बनाया इंसान ने बनाये अनेक भगवान राम रहीम गाड,
वो वक़्त कब आयेगा जब हिंदू मुस्लिम साथ बेठेंगे एक बात पर!

ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत की बीमारी बड़ी भंयकर भारी संकट,
वो वक़्त कब आयेगा जब धर्म मज़हब साथ बेठेंगे एक जात पर!

इंसान ज़मीन को बांट चुके अलग-अलग भाग टुकड़ों में तोड़ मरोड़,
वो वक़्त कब आयेगा जब मर्द औरत साथ बेठेंगे एक जमात पर्!

चांद सितारे सूरज हवा पानी आग आसमान बांट नहीं पाये अपना पराया,
वो वक़्त कब आयेगा जब शेर बकरी साथ बेठेंगे एक घाट पर!

वक़्त का तकाज़ा है मानवता के नाते जाति-वाद ख़तम करो ‘कागा’
वो वक़्त कब आयेगा जब चोर शाहूकार साथ बेठेंगे एक हाट पर!

संविधान दिवस

आओ देश वासियों संविधान दिवस मनायें ,
भारत देश का भविष्य उज्जवल बनायें !

संविधान हमारा आन बान शान शोक्त ,
सुंदर लचीला नशीला आलीशान शान शहोरत !

दुनिया के मुल्क प्रशंसा करते हमारी ,
संविधान में बसती आत्मा जान हमारी !

सब फूलों का रस निचोड़े शहद ,
संविधान निर्माता ने किया अहम अ़हद !

बराबरी का ह़क़ बांटा सबको बराबर ,
बिना ऊंच नीच भेद सब बराबर !

पंद्रह अगस्त को हुए हम स्वतंत्र ,
छब्बीस जनवरी को लागू गण तंत्र !

टूटे हुए टुकड़ों को दोबारा जोड़ा ,
फूट डाल राज करो पछाड़ा छोड़ा !

‘कागा’ बिखरे मोतियों की माला बनाई ,
सुख चैन की होली दीवाली मनाई !

बेगानी शादी

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
अनजानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

दावत नहीं कोई अ़दावत नहीं
शाही शादी मे अब्दुल्ला दीवाना

शामियाना सजा बज रही शहनाई
ताआम ताज़ा तरीन अब्दुल्ला दीवाना

बारात बड़ी शानो शोक्त की
बाराती बेशुमार बंदे अब्दुल्ला दीवाना

दुआ सलाम करता नहीं कोई
गुज़र जाते पास अब्दुल्ला दीवाना

कबाब कोरमा चिकन शोरबा शरबत
धूम मची काफ़ी अब्दुल्ला दीवाना

निकाह़ हुआ सलीक़े से शानदार
गीत गाना गूंज अब्दुल्ला दीवाना

दुल्हन सज धज बेठी डोली
उठी चली ससुराल अब्दुल्ला दीवाना

बिना बुलाये मेहमान बना ‘कागा’
नहीं अदब एहतराम अब्दुल्ला दीवाना

इलज़ाम

अक्सर इलज़ाम लगते मर्दों पर बेवफ़ा होते है ,
बेवफ़ा नहीं औरतों से बनिस्बत बावफ़ा होते है !

औरत बिगड़ जाये ख़ानदान पर बदनुमा काला दाग,
मर्द बदल जाये पीढ़ी दर पीढ़ी काला दाग़ !

इंसान ख़राब होने की मौसम नहीं होती कोई,
मर्द हो चाहे औरत मौसम नहीं होती कोई !

भंवरा बेठ जाता हर फूल पर चमन में,
पोपट बेठ जाता हर कली पर चमन में !

चूस लेते रस धारा चख कर रंग बरंगी ,
रोक टोक नहीं नौंक झौंक नहीं रंग बरंगी !

बुलबुल की बेबसी तितलियों की तकरार नहीं होती,
बाग़बां ख़ुशबू में ख़ुश मस्त तकरार नहीं होती !

हंस हंसनी की जोड़ी सुंदर उल्लू को एतराज़ ,
मोर मोरनी की जोड़ी मोहनी उल्लू को एतराज़ !

‘कागा’ चित्त चंचल चांद की चाहत चकोरी को ,
चांद की चाहत चांदनी नहीं चाहता चकोरी को !

पत्थर

नींव का पत्थर बन कंगूरे बनने से क्या,
मील का पत्थर बन रोड़ा बनने से क्य!

ह़ाल जान उनका बोझ उठा रहे तेरा बेझिझक ,
नीचे दबे पड़े बेह़ाल ऊंचा बनने से क्या !

कंगूरों पर बेठ करते बीठें बिगाड़ देते कबूतर,
झुक देख नीचे वाले मग़रूर बनने से क्या!

मील का पत्थर दूरी बताये राहगीर को बेधड़क ,
आम-दरफ़्त करे आसान गुमान करने से क्या!

पत्थर बन चोटें पडें हथौड़ों की बने मूर्ति,
मंदिर में पूजा हो अनगढ़ बनने से क्या!

पहला क़दम रख बन पगडंडी ऊबड़ खाबड़ राह,
रास्ता बनाया ओरों ने सुरख़ुरू बनने से क्या!

आसमान से तारा तोड़ लाना झूठे वादे खोखले ,
गुमराह नहीं कर रहबर अगुआ बनने से क्या !

पैर नहीं फटी बिवाई क्या जाने पीड़ पराई,
जीना हुइ जंजाल द्वार-पाल बनने से क्या!

कुत्ता काट जाये कुत्ते को नहीं काटते ‘कागा’
हाथ नहीं नाख़ुन काटते चालाक बनने से क्या!

जाति-वाद


जाति वाद की जड़ें गहरी उखाड़ना आसान नहीं ,
जाति वाद की ज़ंजीरें ज़हरी तोड़ना आसान नहींं !

सींची ख़ून पसीना से अनेक त़ब्कों में बांट,
बाड़े में बंद घेरा बंदी तोड़ना आसान नहीं !

ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत की छड़ी,
कड़ी से कड़ी जकड़ी हथकड़ी तोड़ना आसान नहीं!

पैरों में बांधी बेड़ियां जड़ दिया ओर ताला,
दोड़ना हुआ दुश्वार रस्मो रिवाज तोड़ना आसान नहीं!

ढोल नारी शूदर ताड़न के अधिकारी फ़रमान जारी ,
बग़ावत नहीं हुई आज तक तोड़ना आसान नहीं !

ढोल बेचारा बेजान बेज़ुबान बजता मगर बोलता नहीं ,
शूदर नारी शांत स़दियों से तोड़ना आसान नहीं!

स्वर्ग नर्क के सपने सुहाने विरोध का डर,
दो पाटों में पिस रहे तोड़ना आसान नहींं!

कोल्हू के बेल चलते आंखों पर पट्टी ‘कागा’
गर्दन बजे घुंघरू छम-छम तोड़न आसान नहींं!

दिल का ह़ाल


दिल का ह़ाल जानना है तो पास आओ ,
क़रीब बेठ पूछो पीड़ा दिल के पास आओ !

आंखों में आंखें मिला दो आंखें बता देंगी ,
झुकी नज़रें बता देंगी दिल के पास आओ !

ख़ुशी ग़म के आंसू आंखों के समुंदर में ,
लबालब बहती उफान लहरें दिल के पास आओ !

दिल की धड़कन आहें मायूस उदास मुस्काता चेहरा ,
सच्चाई आयेगी सब सामने दिल के पास आओ !

आज कल का प्यार जिस्म मांगता दूर रहना,
होता ह़वस का शिकार दिल के पास आओ !

सच्च ह़क़ का स्वाद कड़वा होता अंजाम बेहरतीन ,
झूठ फरेब मधुर मीठा दिल के पास आओ !

दिल देकर दूर नहीं जाना दर्द बेदर्द दीवाना ,
मत़लब के ख़ातिर मस्ताने दिल के पास आओ !

जवानी के जोश में होशो ह़वास खो बेठते ,
यह दिल से दरिंदगी दिल के पास आओ !

दूर के बजते साज़ आवाज़ लगते सुंदर सुरीले ‘
दिल का साज़ सुनो दिल के पास आओ !

दिल दरिया जल में बसते सीप सांप शंख ,
मछलियां मगर मच्छ घनेरे दिल के पास आओ !

दिल तड़प रहा तेरे वास्ते दीदार चाहता ‘कागा’ ,
प्यासा भूखा बीमार ज़ख़्मी दिल के पास आओ !

जान–अंजान भरी दुनियां ”

अपना-पराया
अपनों को आदर करना हम जानते हैं
अपनों को प्यार कराना हम जानते हैं।
अपनों पर आंच नहीं आए गर्म हवा,
बचाव बंदोबस्त बेहतर करना हम जानते हैं।

दुनिया के किसी कोने में अगर आबाद हैं,
वक्त पर याद करना हम जानते हैं।
हम पहुँच नहीं सकते बरवक्त, दिल हाज़िर,
ख़ून खोलता, मदद करना हम जानते हैं।

बेरूनी मुल्कों में भी होती बेहयाई अक्सर,
आँसू बहाए, हमदर्दी करना हम जानते हैं।
बेअख़लाक़ हमें देखते नफ़रत की निगाह से,
ग़ैरों को प्यार करना हम जानते हैं।

हुब्ब-ए-वतन रख अपनी दिल में,
गद्दार की पहचान करना हम जानते हैं।
सदियों से रहा जानी दुश्मन ज़माना हमारा,
दूध-पानी जुदा करना हम जानते हैं।

फूट डालो, लूट डालो, राज करो फ़ितरत,
नीति-नियत तफ़ावत करना हम जानते हैं।
पड़ोसी से प्यार, नोंक-झोंक बर्दाश्त,
देशभक्ति का भेद करना हम जानते हैं।

अपनी नाकामी, तोहमत पराए सिर मढ़ना,
वाजिब नामंज़ूर कैसी करना, हम जानते हैं।
जो अपनों से बढ़कर पराए बनें,
उनसे दूरी बनाना हम जानते हैं।

हर मुश्किल घड़ी में जो संग खड़ा हो,
उसका सम्मान करना हम जानते हैं।
जो छल-कपट से करें वार हमारे दिल पर,
उनसे दिल जुदा करना हम जानते हैं।

खुद को संभालें, औरों को राह दिखाएँ,
अंधेरों में उजाला करना हम जानते हैं।
दुश्मनी हो चाहे कितनी गहरी,
अमन का पैग़ाम देना हम जानते हैं।

चमकते सितारे, आसमान का गर्व,
अपने कर्मों से ऊँचा उड़ना हम जानते हैं।
जो मिट्टी की खुशबू में बसते सपने,
वो सपने साकार करना हम जानते हैं।

आओ बनाएँ ये दुनिया नई,
जहाँ हर दिल में हो सच्चाई की जगह।
अपना-पराया, कोई फर्क नहीं,
सबसे प्यार करना हम जानते हैं।
जो मिट्टी की ख़ुशबू में बसते अपने ‘कागा’
वो सपने साकार करना हम जानते है!

गुरु: कलमकार, “डॉ. तरुण राय कागा”
पूर्व विधायक, कवि साहित्यकार
चौहटन जिला बाड़मेर राजस्थान

शिष्या: हिंदी साहित्य जगत की एक नई रचनाकार,
बसंती

‘कागा तख़लस़’

प्रेम बंधन

कर प्रेम माता पिता से शुद्ध भावना से
कर प्रेम बहन भ्राता से शुद्ध भावना से

बिना प्रेम घर आंगन सूना जेसे बिना वृक्ष वन
कर प्रेम प्रिय परिजन से शुद्ध भावना से

बिना प्रेम चेहरा जेसे बिना मूंछ दाढ़ी मर्द
कर प्रेम दादा दादी से शुद्ध भावना से

बिना प्रेम जीवन अधूरा जेसे बिना पूंछ पशु
कर प्रेम नाना नानी से शुद्ध भावना से

प्रेम पुण्य पाप नहीं कर मन वचन से
कर प्रेम चाचा चाची से शुद्ध भावना से

प्रेम प्रसाद स्वाद मधुर रस धारा चख ले
कर प्रेम मामा मामी से शुद्ध भावना से

मानव जीवन मिला चौरासी लाख योनियों में चंगा
कर प्रेम परमेश्वर दाता से शुद्ध भावना से

धर्म पत्नी अर्धांगिनी संगनी से खाये सात फेरे
कर प्रेम चित्त चंचल से शुद्ध भावना से

सौंपा निकाल कलेजे का टुकड़ा लाड़ली कोयल ‘कागा’
कर प्रेम सास ससुर से शुद्ध भावना से

ईर्ष्यालू


ईर्ष्या की आग में जल ख़ाक हो जाओगे
देख पराया जोश जल्वा जल राख हो जाओगे

रास्ता रोकाने नहीं आया राह में रोड़े बनकर
आग बबूले नहींं बनो जल ख़ाक हो जाओगे

चिंगारी सुलगाते हो चुप चाप पराये घर में
है झौंपड़ी आस पास जल ख़ाक हो जाओगे

मुक़दर का सिकंदर बन रख भरोसा मेह़नत पर
छल कपट छोड़ बंदा जल ख़ाक हो जाओगे

बिना बारिश में भीगे हरा चरना चाहते
शैख़ चिल्ली नहीं बन जल ख़ाक हो जाओगे

किराये पर करतें काम मज़दूर बन रख ओक़ात
बेकार में बकवास बुरी जल ख़ाक हो जाओगे

कुत्ता भौकता है सामने आकर रूबरू पूंछ हिलाये
मिले रोटी टुकड़ा रिश्वत जल ख़ाक हो जाओगे

कहां राजा भौज कहां गगूं तेली तुलना करते
चुनौती को करो स्वीकार जल ख़ाक हो जाओगे

बराबरी करो बुराई नहीं बारी-बारी से ‘कागा’
ईर्ष्या की आग भेंयकर जल ख़ाक हो जाओगे

एक तीर अनेक निशाने

एक तीर से अनेक निशाने लगाने पड़ेंगे
वक़्त का तकाज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

सीधी उंगली घी नहीं निकले बर्तन से
टेढी का अंदाज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

नया ज़माना नया दौर त़ौर तरीक़ा तदबीर
बासी नहीं ताज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

रहबर रहज़न बन गये चाहते थे नुमाईंदगी
लगा ताला दरवाजा़ है निशाने लगाने पड़ेंगे

इमारत तामीर हो रही नया उम्दा बंगला
बड़ा रक़ीब राज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

अरमानों का गला घोंट बन गये का़तल
इनाम से नवाज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

ग़ुलाम बन गया गै़र का बेग़ैरत ‘कागा’
बेज़मीर बंदा जनाज़ा है निशाने लगाने पड़ेंगे

दोगलापन

मुख में राम-राम बग़ल में छुरी
दोगले लोगों की दोहरी आ़दत है बुरी

आपके सामने आपकी प्रशंसा मेरे सामने मेरी
पीठ पीछे करते गिला आ़दत है बुरी

चापलूसी चुग़ली चाटुकारी चमचागिरी में चतुर सुजान
चाय चुस्की पर चर्चा आ़दत है बुरी

हाथ में माला तस्बीह मुंह पर ताला
घूस घपला घोटाला करते आदत है बुरी

गांधी के तीन बंदर बनते जान-बूझ
आंखें कान मुंह बंद आ़दत है बुरी

दारूं की दो घूंट पीकर करते दंगा
पंगा पाप करते अड़ंगा आ़दत है बुरी

पराया ह़क हड़प करने में देर नहीं
सुनते नहीं चीख़ तड़प आ़दत है बुरी

सौतेला करते सलूक मक्खी चूस कंजूस ‘कागा’
झूठ को सच्च ठहराते आदत है बुरी

मन की बात


आओ मिल जुल करें अपने मन की बात
आओ हंस खिल करें अपने मन की बात

ज़िंदगी का भरोसा नहींं कब निकल जायें सांसें
आओ भविष्य उज्जवल करें अपने मन की बात

ग़नीमत है रात गुज़री ख़ुशी ग़मगीन ख़ेर से
आओ दिल मचल करें अपने मन की बात

पल का भरोसा नहीं करते बात आज अनाड़ी
आओ ऊंचा उछल करें आपने मन की बात

आज का भरोसा नहीं करते बात कल की
आओ अचल अटल करें अपने मन की बात

आज की रात हम देखेंगे नहीं कोई पता
आओ उथल पुथल करें अपने मन की बात

कल की स़ुबह होगी यह कौन जाने ‘कागा’
आओ छोड़ छल करें अपने मन की बात

अपना सपना


अपने सपने नहीं होते छोड़ जाते साथ
अपने अपने नहीं होते छोड़ जाते साथ

पुरानी परम्परा चली आई आज तक रस्म
उंगली पकड़ बच्चे चलते छोड़ जाते साथ

अपने तो अपने होते दर्द देते दुगना
पराई पीड़ा परवाह नहीं छोड़ जाते साथ

ग़म ख़ुशी में आंखें भर आती डबडब
आंसू भी बहकर बाहर छोड़ जाते साथ

माता पिता बहिन भाई पर भरोसा नहीं
आगे पीछे तोड़ नाता छोड़ जाते साथ

पतझड़ बसंत दोनों प्रकृति के प्रबल नियम
पीले पड़ पैड़ पत्ते छोड़ जाते साथ

सूखे ठूंठ पर घौंसला नहीं बनाते पंछी
उड़ जाते पंखेरू फुर्र छोड़ जाते साथ

मत़लब के वास्ते करते लोग चापलूसी ‘कागा’
काम हुआ करते बदनाम छोड़ जाते साथ

मेरा गांव मेरी गली


चले आना मेरे गांव मेरी गली में
कभी आना चले पांव मेरी गली में

पलक पावड़े बिछा बेठे तेरी याद में
चले आना मेरे यहां मेरी गली में

मेरी कुटिया घास फूस की सजाये फूल
चले आना मेरी जान मेरी गली में

करवटें बदल रात गुज़ारी राह देख कर
चले आना मेरे जहान मेरी गली में

शोर शराबा ख़लल ख़राबा नहीं सन्नाटा छाया
चले आना मेरे मेहरबान मेरी गली में

निहारते आबले छाले पड़ गये आंखों में
चले आना मेरे अरमान मेरी गली में

वादा कर छोड़ गये अधर-झूल में
चले आना मेरे मेहमान मेरी गली में

आहट हवा झौंके की सुन चौंक पड़ती
चले आना मेरे महान मेरी गली में

बावली बिदक उड़ाऊं आंगन आया काला ‘कागा’
चले आना मेरे मकान मेरी गली में

हम दोनों एक


हम दोनों है एक जिस्म से जुदा
हम दोनों है एक नफ़स से जुदा

चाल चेहरा चित्र चरित्र मेल नहीं खाते
ख़ून दोनों एक सुर्ख़ तास़ीर से जुदा

कोई मूनंष कोई मुज़कर क़ुदरत की करामात
अंग उज़्वे तफ़ावत ढंग उमंग से जुदा

हम रूह़ हूब्हू रूबरू होते जब सामने
ख़ुशी ख़ुशबू नेक नियत फ़ित़रत से जुदा

आबो-हवा एक साया धूप तेज़ तपिश
अस़र होता एक ह़ल्का भारी होकर जुदा

धर्म मज़हब जाति लिबास अ़क़ीदत इरादा अल्ह़दा
मंज़िल मक़स़द सब एक त़ौर त़रीक़ा जुदा

कोई चलता पैदल पगडंडी नंगे पांव ‘कागा’
कोई घोड़ा गाड़ी भरते उड़ान रास्ते जुदा

मर्द मुजाहिद


मर्द हमदर्द बन दर्द देने को नामर्द बेठे हैं
मर्द हमदर्द बन दर्द देने को बेदर्द बेठे हैं

कसाई काट देता गर्दन लेता जान झटके में
इंसान मेहरबान बन जान लेने को बेदर्द बेठे है

सिर दर्द आपने बन जाते ग़ैरों से गिला नहीं
आला आ़लीशान बन नादान होने को बेदर्द बेठे है

बेगैरत बन बग़ावत नहीं कर कमजो़र क़रीब ग़रीब से
आवाज़ ज़ुबान बन बेज़ुबान करने को बेदर्द बेठे है

ज़ालिम को मज़ा आता ज़ईफ़ को ज़र्ब देना सताना
मुश्कल आसान बन घमसान करने को बेदर्द बेठे है

नामुराद नामर्द उधेड़-बुन में रहते बुरा करने को
ईमान अरमान बन बेईमान बनने को बेदर्द बेठे है

नेकी कर दरिया में डाल रख नेक नियत स़ाफ़
एह़सान क़ुर्बान बन नाफ़रमान बनने को बेदर्द बेठे है

बेदर्द क्या जाने दर्द की दर्द भरी दास्तान ‘कागा’
कलम क़द्रदान बन बेक़द्र बनने को बेदर्द बेठे है

दिलदार


दिलदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये
सरदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

ख़्वहिश दिल की मुकमल हो गई मालिक
ख़ुदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

इश्क़ मिज़ाजी मजाजी़ ह़क़ीक़ी कौन सा बताना
दमदार बन चुके हो ओर किया चाहिये

दुबले पतले नज़र आते नूरानी निहायत निराली
जानदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

आपकी अदा ने निज़ाम बदल दिया दस्तूर
शानदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

स़िह़रा में सूखा ठूंठ गुंचे निकल आये
आबदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

ख़ज़ान की बेरुख़ी ने बर्बाद किया गुलशन
ख़ुशबूदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

चमन में चहक रही चिड़ियां बहके बुलबुल
मज़ेदार बन चुके हो ओर क्या चाहिये

दिल हमने दे दिया जान बाक़ी ‘कागा’
जागीरदार बन चुके हो अब क्या चाहिये

आत्म-कथा


आत्म कथा लिख रहा हूं भूली बिसरी यायें
आत्म गाथा लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

बच्चपन से पच्चपन तक बाद बचकाना ह़ाल चाल
आत्म व्यथा लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

घुटनों बल चले तब ख़्वहिश थी उठने की
आत्म रिश्ता लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

उठ कर चलने लगे इच्छा हुई दौड़ने की
आत्म व्यवस्था लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

दोड़ते गिरते उठ चले दोड़े दम ख़म से
आत्म आस्था लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

मंज़िल मिली सपने में नहीं सोचा था कभी
आत्म सत्ता लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

जिस पर एह़सान किया वो बने जानी दुश्मन
आत्म हत्या लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

‘कागा’ क़त़ई नहीं करना भलाई निर्गुण नादान पर
आत्म ख़त़ा लिख रहा हूं भूली बिसरी यादें

दिल जवान


इंसान बुढ़ा हो जाता दिल जवान होता है
मर्द हो चाहे औरत दिल जवान होता है

प्यार में उम्र नहीं होती रुकावट दिलों में
काला गोरा रंग रूप दिल जवान होता है

इश्क़ अंधा चार आंखों के बावजूद दिल दीवाने
जात पात बाधा नहीं दिल जवान होता है

जिस्म से हो बीमार दिल रहता चुस्त दुरस्त
आंखों में उमड़ा प्यार दिल जवान होता है

आशिक़ माशूक़ की अदायें बड़ी का़तल जीना मुशकिल
मरने जीने नहीं देती दिल जवान होता है

दिल में नहीं होता एक क़त़रा ख़ून का
ख़ून रेज़ी बर्पा देती दिल जवान होता है

बुढ़ी घोड़ी लाल लग़ाम कौन सवार चढ़ा ‘कागा’
बिला वजह होते बदनाम दिल जवान होता है

बाल दिवस

आज बाल दिवस है चाहे बेटा हो चाहे बेटी
दोनों आंखों के तारे चाहे बेटा हो चाहे बेटी

दोनों जिगर के टुकड़े होते मां बाप की ममता
दोनों दिल के दुलारे चाहे बेटा हो चाहे बेटी

जिस्म दोनों का अलग मगर बहती रक्त धारा एक
दोनों प्रिय पावन प्यारे चाहे बेटा हो चाहे बेटी

दोनों की किलकारी गुंजन होती जब घर आंगन में
महक चहक वारे न्यारे चाहे बेटा हो चाहे बेटी

बेटी को बोलते पराया धन मगर होती हरदम अपनी
बेटी बचाओ के नारे चाहे बेटा हो चाहे बेटी

बिना बेटी बहु कहां से आयेगी सब जानते है
मां दोनों की बलिहारी चाहे बेटा हो चाहे बेटी

बेटा बेटी एक समान दोंनों मां बाप की संतान
दोनों की एक फुलवारी चाहे बेटा हो चाहे बेटी

दुआ करो दोनों पर बाल दिवस के मौक़े पर
दोनों केसर की क्यारी चाहे बेटा हो चाहे बेटी

बेटा बेटी की करो परिवर्श मन चित्त से ‘कागा’
यह दौर है दुनियादारी चाहे बेटा हो चाहे बेटी

बुझता दीपक

तेल ख़तम हो रहा है दीपक बुझने वाला है
खेल ख़तम हो रहा है दीपक बुझने वाला है

उम्र ढल चुकी बदन बेबस झुर्रियां छाई चेहरे पर
चलना फिरना हुआ मुश्किल मुह़ाल मायूसी छाई चेहरे पर

होश ह़वास चुस्त दुरस्त नहीं पांव लड़खड़ा रहे हरदम
सांसें फूल रही सिसक कर कांप रहा जिस्म हरदम

अंतिम छोर पर बेठे हम छलांग मारना बाक़ी है
आर पार की लड़ाई जारी ज़रा जान बाक़ी है

अब दिया टिमटिमा रहा बिना तेल बिना बाती जलती
उजाला कम हो गया अंधेरा छाया गहरा बाती बलती

जलता तेल बाती नाम होता दिया का जल रहा
दिये तले अंधेरा एसा लगातार गोरख धंधा चल रहा

दिया जल ख़ुद करे रोशन घर आंगन को उजाला
बदले में नहीं मिलता इनाम चाहे नहीं करे उजाला

‘कागा’ दीपक मिट्टी का हो चाहे सोन चांदी का
ख़ोफ़ बना रहता हैं हमेशा हवा त़ूफ़ान आंधी का

दिल देख

हम दिल देख दिल देते है चेहरा देख नहीं
हम मिल देख दिल देते है पेहरा देख नहीं

आपकी शानो शोक्त रोब रुतब्बा से क्या लेना देना
हम दिल देख दिल देते है स़ेहरा देख नहीं

हमें धन दोलत की दरकार नहीं कोई ख़ोफ़ ख़त़रा
हम दिल देख दिल देते है गेहरा देख नहीं

दिन रात का कोई फर्क़ नहीं पड़ता सब बराबर
हम दिल देख दिल देते है सवेरा देख नहीं

हम ख़ाना-बदोश घुमकड़ नहीं कोई ठोर ठिकाना दायमी
हम दिल देख दिल देते है बसेरा देख नहीं

स़ूरत मूर्त सुंदर अदायें कातल होती कोठे वालियों की
हम दिल देख दिल देते है डेरा देख नहींं

बद-चलन बेह़य्या डोरा डाल बेठे राहों मे बेताब
हम दिल देख दिल देते है आवारा देख नहींं

चांदनी रोशनी काला गौरा से प्यार नहीं ज़रा ‘कागा’
हम दिल देख दिल देते है उजियारा देख नहींं

किरदार

किरदार रख दमदार जानदार शानदार अस़ल कसोटी
किरदार रख ईमानदार वफ़ादार ख़ुदार अस़ल कसोटी

ग़द्दार नहीं बनना तुम ग़ैरत मंद ग़नी हो
किरदार रख बार बार ख़ुदार अस़ल कसोटी

सोन पीतल का रंग पीला एक समान
किरदार रख धूंआ धार ख़ुदार अस़ल कसोटी

हंस बगुले दोनों उजले नियत नीति निराली
किरदार रख रस धार ख़ुदार अस़ल कसोटी

काजल कस्तूरी रंग रूप समान तास़ीर अलग
किरदार रख सदा बहार खु़दार अस़ल कसोटी

काग़ज़ फूल चमन गुल फ़र्क़ उल्ट फेर
किरदार रख खुशबू दार ख़ुदार अस़ल कसोटी

मिश्री फिटकड़ी डली दोनों एक स्वाद अल्ह़दा
किरदार रख सोच विचार ख़ुदार अस़ल कसोटी

नमक ह़लाल होना नमक ह़राम नहीं बंदा
किरदार रख तेज़ तर्रार ख़ुदार अस़ल कसोटी

चरण आचरण स़ाफ़ सुंदर रख जीत चुमेगी
किरदार रख सोलह श्रृंगार ख़ुदार अस़ल कसोटी

बोल अनमोल अमृत धारा कोयल बन ‘कागा’
किरदार रख अस़र दार ख़ुदार अस़ल कसोटी

ज़िंदगी का सफ़र

ज़िंदगी के छोड़ जाना चंद यादगार निशान
क़ायम दायम रह जायें चंद यादगार निशान

आसमान से तारा तोड़ लाना झूठे वादे
खोखले बंधन तोड़ जाना चंद यादगार निशान

रोटी कपड़ा मकान ज़िंदगी की अहम ज़रूरत
ज़रिया बन छोड़ जाना चंद यादगार निशान

भूखे को भोजन प्यासे को पानी पिलाना
सहारा बन जोड़ जाना चंद यादगार निशान

कोशिश कामयाबी की कुंजी खुलता बंद ताला
मुक़द्दर को मोड़ जाना चंद यादगार निशान

ग़ैर की गोद में नहीं बेठना बदगुमान
ज़मीर को झंझोड़ जाना चंद यादगार निशान

ख़ुद ग़र्ज़ बन ग़ैरत नहीं करना ग़ायब
छाप अपनी छोड जाना चंद यादगार निशान

पराई पूंछ पकड़ पिछलग्गू कभी नहीं बनना
अपनी मूंछ मरोड़ जाना चंद यादगार निशान

ख़ानदान का नाम ख़राब नहीं करना ‘कागा’
टूटा रिश्ता जोड़ जाना चंद यादगार निशान

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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