Kavita Apne Apne Ram
Kavita Apne Apne Ram

अपने अपने राम

( Apne Apne Ram ) 

 

अपने अपने राम भजे सब मन में मोतीराम हुए।
मार कुंडली रावण बैठा खुद ही राजा राम हुए।

मर्यादा का हनन हो रहा संस्कार सारे लुप्त हुए।
कुंभकरण सी नींद सोए आचरण विलुप्त हुए।

लाज शर्म आंखे खोई शिष्टाचार सब भूल गए।
स्वार्थ में अंधे होकर अपनी जिद पर तूल गए।

अपनी डफली राग अपना अपने अपने राम हुए।
अपना अपना मंदिर चुना अपने अपने धाम हुए।

अपना रस्ता अपनी मंजिल अपनापन छोड़ दिया।
राम नाम की छोड़ी माला धर्म निभाना छोड़ दिया।

घर छोड़ा घर वाले छोड़े अपने आप में मस्त हुए।
धन के पीछे दौड़ रहे हैं भागम भाग में व्यस्त हुए।

आराध्य श्रीराम हमारे प्रभु हम सबके तारण हारे हैं।
घट घट में श्री राम बिराजे दुख भंजन प्रभु प्यारे हैं।

जगत के पालक श्रीराम सृष्टि संचालक है श्रीराम।
घट घट के स्वामी हैं श्रीराम उर अंतर्यामी है श्रीराम

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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