Kahani Ye Kya Kiya

उफ़! ये क्या किया | Kahani Ye Kya Kiya

चारों तरफ पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी। शाम तक तो सब ठीक था आखिर सुबह यह क्या हो गया? कॉलोनी में आखिर कौन आया? कोई बाहरी व्यक्ति तो अभी तक तो नहीं आया?

पुलिस भी कॉलोनी के गार्ड से पूछताछ कर रही थी । उसे भी कोई सुराग नहीं मिल रहा था कि आखिर वारदात को किसने अंजाम दिया। जब कोई व्यक्ति आया नहीं तो आखिर इतना दर्दनाक हादसा कैसे हो गया?

सबके मन में बस एक ही सवाल गूंजता रहता था। कौन हो सकता है अपराधी ?
क्या बेटी ने ही अपने बाप और भाई की हत्या की है?

बेटी को हिरासत में ले लिया गया था। क्योंकि परिवार में और कोई चौथा सदस्य नहीं बचा था?
बाद दरअसल यह थी कि सुजाता जब सात आठ वर्ष की रही होगी तभी उसकी मां चल बसी । अब परिवार में मात्र वह उसका छोटा भाई एवं पिता ही बचे। पिता अक्सर बच्चों को खिला पिला कर काम पर निकल जाया करते थे। ऐसे में स्कूल से आने पर सुजाता एवं उसका छोटा भाई ही घर पर रहा करते।

सुजाता धीरे-धीरे यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। इसी बीच उसके स्कूल में एक लड़का पढ़ता था । उसके साथ उसकी नजदीकियां बढ़ने लगी। यह नजदीकी प्रेम में कब बदल गयी पता नहीं चला।

धीरे-धीरे वह लड़का घर भी आने लगा। एक दिन उसके पिता की छुट्टी थी । इस बीच वह लड़का आ गया। पिता ताड़ गए की बेटी हाथ से छूट चुकी है। फिर भी उन्होंने बेटी को बहुत समझाने का प्रयास किया।

उमड़ती जवानी का अल्हड़पन कहें इसका बेटी पर उल्टा प्रभाव हुआ। बात आई गई हो गई। उस दिन के बाद लड़का तो घर पर नहीं आता लेकिन आग थी कि और लग चुकी थी।

एक दिन सुबह-सुबह ही वह लड़का आ धमका। पिता प्रतिरोध कुछ करता तब तक उसने धारदार हथियार से उसकी हत्या कर दी। भाई बोलने को हुआ तो उसको भी मौत के घाट उतार दिया।

यह मंजर देख एक बार सुजाता बहुत जोर से चिल्लाई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी घटना हो सकती है। ज्यादा चिल्लाने से कहीं और लोगों का ना पता हो जाए इसलिए उसने अपने पिता और भाई की लाश को अपने आशिक के साथ मिलकर जो कि वह अपने साथ बोरी वगैरा लाया था उसमें भरकर एक कोने पर लगा दिया।

आज वह बहुत पछता रही है उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका आशिक इस प्रकार से उसके ही बाप एवं भाई को मौत के घाट उतार देगा।

वर्तमान समय में ऐसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। आवश्यकता है कि अभिभावक अपने बच्चों को समझे उन्हें पूरा समय दे। बेटियों को भी एक दोस्त की भांति उसके सुख-दुख में सहयोगी बने। कभी-कभी हमारी छोटी सी भूल कैसे हमारे जीवन घर परिवार को बर्बाद करके रख देती है यह तब पता चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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