
कैसे-कैसे लोग
( Kaise-Kaise Log )
अक्ल के कितने अंधे लोग।
करते क्या-क्या धंधे लोग।
मासूमों के खून से खेले,
काम भी करते गंदे लोग।
रौब जमा के अबलाओं पर,
बनते हैं मुस्तंडे लोग।
तन सुंदर कपड़ों से ढकते,
मन से लेकिन नंगे लोग।
अपनाते दौलत की खातिर,
बुरे-बुरे हथकंडे लोग।
भिखमंगो को ठेंगे दिखाके,
प्रभु को देते चंदे लोग।
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कवि : बिनोद बेगाना
जमशेदपुर, झारखंड