बावरा मन
बावरा मन

बावरा मन

( Bawara Man )

 

 

बावरा   मन   मेरा,  हर  पल  ढूंढे   तुमको।
नैना द्वारे को  निहारे, एकटक देखे  तुमको।

 

प्रीत  कहते  है  इसे, या  कि कोई रोग है ये।
जो  झलकता तो नही, दर्द  का संयोग है ये।

 

कहना चाहूं कह न पाऊं, ऐसा  मनरोग है ये।
झांझरी सा मन ये बाजे, देख ले जैसे तुमको।

 

मन  में  कुछ  साज  बजे, अनकही सी  बात  कहे।
चुभती  है   ये  पुरवाई,  प्रीत  न आग लगायी।

 

कैसा  संयोग  हुआ  है, तुझसे  ही  रोग  लगा है।
चाँदनी रात गीत मल्हार,ना कुछ भी भाये मुझको।

 

चढता  यौवन  का  नशा,  दर्द  मे भी है  मजा
पढ ले जज्बात अगर,  शेर  लिखता है व्यथा।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

 

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6 COMMENTS

  1. शेर जी आप तो इतनी खूबसूरत कविता लिखते है यह गौरव को बात है। वाह वाह आपने तो कमाल ही कर दिया।

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