कल रात

कल रात | Kal Raat

कल रात

( Kal Raat )

ज़िन्दगी धूप सी लगी कल रात
इस तरह बेबसी दिखी कल रात

जिसको देखा नहीं सँवरते मैं
वो भी सज-धज के तो मिली कल रात

मिलने बेचैन हो गया दिल तो
रात भी जो कटी नही कल रात

ज़िन्दगी से जिन्हें शिकायत थी
खुशियां उनमें मुझे दिखी कल रात

ज़िन्दगी भर का साथ था जिनका
दूर कितना खड़ी रही कल रात

जिस गली से रहा आना-जाना
मुझको वह अजनबी लगी कल रात

जिसको तुम बेवफ़ा प्रखर कहते
वो भी पीछे खड़ी रही कल रात

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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