
कमाल करते हो
( Kamaal karte ho )
लगाकर चाँद पर दाग कमाल करते हो,
बातें बड़ी आजकल बेमिसाल करते हो।
बेचैन हो जाता दिल मेरा बातें सुन तुम्हारी,
खुद से क्यों नहीं तुम ये सवाल करते हो?
यूँ उलझा नहीं करते हर बार ही किसी से,
बेवज़ह तुम हर बात पर बवाल करते हो!
करता हूँ कोशिश तुम्हें लाख समझाने की,
मेरी हिदायत पे तुम क्यूं मलाल करते हो।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )