कलयुग का प्रेम | Kalyug ka Prem
कलयुग का प्रेम
( Kalyug ka prem )
एक बार एक लड़के ने एक लड़की से कहा “मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं।” फिर लडकी ने कहा “मुझे कुछ नही चाहिए सिर्फ आप मेरा सम्मान रखना ।”
लड़के ने कहा, “देखो तो, बड़े प्यार से लाया हूं यार।”
जब लड़की ने देखा कि वो राधाकृष्ण की मूर्ति ले आया है, जो कि उसके आराध्य है तो वो ‘ना’ नही कर पाई।
लड़के ने कहा “राधेकृष्ण की भांति मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम पवित्र है और मैं तुम्हारे मान सम्मान पर आंच नहीं आने दुगा। हमेशा सच्चा प्यार करूंगा।”
कुछ महीने पश्चात लड़की की लड़के से किसी कारणवश बात नही कर पा रही थी, तो लड़का शक करने लगा कि उसका कहीं और चक्कर तो नही । लेकिन लड़की ने उसे सारी बातें बता दी थी जिस वजह से बात नही कर पा रही थी।
अब क्या था लड़का रोज उससे मिलने के लिए कभी कोचिंग जाते वक्त आटो पर बैठ जाता और जो मन करता भला बुरा बोलने लगता। हद तो तब हो गई, जब वो उसके कोचिंग चला गया और उसे एक तमाचा भी जड़ दिया ।
अब उसकी इन हरकतों से उस लड़की के हृदय में उसके लिए नफरतें तो नही लेकिन नाराजगी बढ़ती गई और दूर हो गई।
आज भी वो जब राधाकृष्ण की वो मूर्ति देखती है तो उसे मूर्ति देते वक्त हुई वार्तालाप याद आती है। और वो सोचती है कि क्या ऐसा ही प्यार था राधाकृष्ण का या कलयुग में प्रेम की परिभाषा ही बदल गई है। क्या अब ‘अपने प्रेम का मान रखना’ प्रेम करने का हिस्सा नहीं रहा । ऐसे बहुत से सवाल उसके मन में चल रहे थे।
© प्रीति विश्वकर्मा ‘वर्तिका
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