Kam samajhta hai
Kam samajhta hai

कम समझता है

( Kam samajhta hai )

 

दिलों की बात क्यूं जाने वो अक्सर कम समझता है
मेरी फितरत है शोला सी मुझे शबनम समझता है।

मुझे डर है कि उसका ज़ख़्म मत नासूर बन जाए
वो पगला दोस्तों को ज़ख़्म का मरहम समझता है।

जरा इंसान की नाशुक़्रियों पर गौर करिए तो
दिया करती खुशी उन बेटियों को गम समझता है।

कभी हंसकर के उससे बात क्या कर ली मेरी तौबा
उसी दिन से वो दीवाना मुझे हमदम समझता है।

उसे खदशा यही मैं एक दिन नज़रें बदल लूंगी
मेरे दिल को भी शायद वो कोई मौसम समझता है।

ये दिल करता हमेशा दीद की ख्वाहिश उसी के क्यों
जमाना मेरी खातिर जिसको नामहरम समझता है।

कमाता जो मशक्कत से नयन दो जून की रोटी
वही फ़ाकाकशी के दर्द का आलम समझता है।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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