कर्म | Karm
कर्म
( Karm)
कर्म करो तुम हे मानव, तू क्यो संताप में डूबा हैं।
फल देना है काम मेरा, तू कर जो तेरी पूजा है।
मैं हर युग का नारायण जो, हर पल तेरे साथ रहा,
संसय त्याग के कर्म करो, उस सा कर्म न दूजा है।
मैने ही खंम्भे को फाड कर, के प्रहलाद की रक्षा की।
बन परशुराम धरा से सारी, पापाचर् की हत्या की।
त्रेता का मै वही राम हूंँ, जिसने रावण का वध की,
श्रीकृष्ण बन द्वापर में, सारे दुष्टो को ही मंथ दी।
मै ही गीता मै रामायण, मै शंकर त्रिपुरारी हूँ,
अमृत विष को बांटने वाला, मै ही मोहिनी नारी हूँ।
मैं ही तुम में. तुम ही हूँ मै, मै ही दुर्गा काली हूँ,
युगों युगों से सत्य समाहित, मै तुमसा बैरागी हूँ।
आज है तू कल दूजा होगा,मोह त्याग सतकर्म करो।
ईश्वर की मर्जी को मान कर,तुम अपना बस कर्म करो।
सत्य अगर है चाह तेरी तो, ईश्वर खुद कर जाएगा,
हूँक नही हुंकार भरो अब, जो होगा देखा जाएगा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )