Kavita Aahat

आहट | Kavita Aahat

आहट

( Aahat )

 

घर के भीतर तो नज़र आती हैं दीवारे हि
रास्ते तो बाहर हि दिखाई देते हैं
उजाले की चाहत में कलियाँ
अंधेरे मे ही सजती संवरती हैं

आते नहीं कहकर अवसर कभी
उनकी आहट को हि
महसूस करना होता है
गफलत भरी नींद को हि
लापरवाही कहते हैं

आभास हि होता है मीन के आने का
बगुले का निशाना अचूक होता है
गँवा देने से मौके दुबारा नही आते
मलाल खुद पर होता है

रहबर के मिलते ही खुलते हैं द्वार
मुकद्दर के
परख की नज़र खुली हो तो
भटकाव अधिक नही होता

जगाना चाहे उजाला लाख मगर
जगने की निम्मेदारी खुद की होती है
कम्याबियां भी करती हैं इंतजार
मगर,
मूल्य खुद को हि चुकाना होता है

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

तुम तुम हि हो | Kavita Tum Tum Hi Ho

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *