Kavita kissne dekha
Kavita kissne dekha

किसने देखा

( Kissne dekha ) 

 

 

कल के कल को किसने देखा

ना हमने ना तुमने देखा

जीवन के हर गुणा गणित में

तू -तू, मैं -मै सबने देखा,

 

बिन मौसम बरसातें देखा

कितने दिन और रातें देखा

बदल गये सूरज चंदा क्या?

बदला क्यों जज्बातें देखा?

 

बहती सर्द हवाएं देखा

मौसम और फिजाएं देखा

क्या? बदलें पूरब पश्चिम ,फिर

ज्यों त्यों शमा दिशाएं देखा ,

 

बदलें ब्यथा बलांए देखा

सच को पांव फैलाए देखा

ऋतु वसंत आने से पहले

पतझड़ पतित कलाएं देखा,

 

करवट और मालाएं देखा

दंगा और सभाएं देखा

बदला क्या कुछ अंत समय में

बहती अश्रु धाराएं देखा,

 

मधुशाला मधुराई देखा

आम्र बौर बौराई देखा

बदल रही दुनिया में मैंने

बिन बदला ममताई देखा,

 

गंगा की गंगाई देखा

सागर की गहराई देखा

बदल गया क्या रंग गगन का

या बदला परछाईं देखा,

 

कान्हा की दो दो मैंयों में

क्या बदला ममताई देखा

बदल सको तो खुद को बदलो

कब बदला अच्छाई देखा।

 

 

रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )

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