Kavita Bachpan ki Baatein

बचपन की बातें | Kavita Bachpan ki Baatein

बचपन की बातें!

( Bachpan ki baatein ) 

 

सुनाओ कोई फिर बचपन की बातें,
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें।
दरख्तों की छाँव में होती थीं बातें,
बड़े ही मजे से चलती थीं साँसें।

दुआएँ बड़ों की मिलती थी हमको,
नाजो-अदा न उठानी थी हमको।
कागज की कश्ती वो बारिश का पानी,
आओ करें उस जमाने की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर बचपन की बातें।

शोहरत ये दौलत मेरी तू ले लो,
आँचल वो माँ का फिर से ओढ़ा दो।
नई थी जमीं वो, नया आसमां था,
गुम हो चुके उन लम्हों की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर बचपन की बातें।

इमली की चटनी वो चूल्हे की रोटी,
माँयें सभी में थी संस्कार बोतीं।
आम के टिकोरे,हाथों में सुतुही,
नमक वो लगाकर खाने की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर बचपन की बातें।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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