Kavita bandhan

बन्धन | Kavita bandhan

बन्धन

( Bandhan )

 

खुद को भुला के कैसे तुम्हे, प्यार हम करे।
हम अस्तित्व को अपने भला, कैसे छोड दे।

नदियाँ नही समुन्दर हूँ मै, इतना तो जान ले,
मुझमे समा जा या सभी, बन्धन को तोड दे।

शिव शक्ति का समागम होगा,गंगा जटाओ मे।
रूकमणि को ही कृष्ण मिले, राधा बहारो में।

राघव के संग जानकी का,मिलना विधान था,
वैष्णवी अब भी राह देखती, त्रिकुटी पहाडों पे।

मै तुझमे डूब जाऊं और तू मुझमें डूब जा।
चीनी हो जैसे दूध मे, इक ऐसा फिंजा बना।

मत तोड दिल के रिश्ते को, ये ही तो सच रहा,
मद् मे जो अपने डूब गया, उसका नही भला।

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें : –

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *