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बेखबर जिंदगी | Kavita bekhabar zindagi

बेखबर जिंदगी

( Bekhabar zindagi )

 

आंधी तूफां तम छाया है ईश्वर की कैसी माया है
जाने क्या है होने वाला कैसा यह दौर आया है

 

धुआं धुआं हुई जिंदगी काले घने मेंघ छाए हैं
रस्ता भूल रहा कोई बादल संकट के मंडराये हैं

 

मुश्किलों का दोर कठिन दिनोंदिन गहराता आया
खुद से बेखबर जिंदगी आदमी सदा जूझता आया

 

कहीं युद्ध से आतंकित जीवन की डोर मुश्किल में
महंगाई ने पांव पसारे अपनापन ना रहा दिलों में

 

कोरोना ने कहर ढहाया ये दुनिया सारी सहम गई
रिश्तो में कड़वाहट घुली दया धर्म अब रहम नहीं

 

स्वार्थ का बाजार गर्म है ना रही कोई लाज शर्म है
धन के लोभी अंधों का लूट खसोट हुआ कर्म है

 

बुरे कर्म का बूरा नतीजा फिर जिंदगी बेखबर है
चकाचौंध फैशन में पागल हुआ मेरा यह शहर है

 

 ?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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