बेटे भी दहलीज छोड़ चले
बेटे भी दहलीज छोड़ चले
ऊंची शिक्षा पाने को जो रुख हवा का मोड़ चले।
बेटियों की बात नहीं बेटे भी दहलीज छोड़ चले।
कोचिंग क्लासेज हॉस्टल शिक्षा का ठिकाना है।
कड़ी मेहनत रातदिन कर मंजिल तक जाना है।
घर आंगन दीवारें दहलीज सूना सूना सा लगता है।
मात पिता की याद सताती दीप प्रेम का जगता है।
मुट्ठी भर भर पैसा भेजे जीवन कहीं संवर जाए।
मुश्किलें मां-बाप हर लेते टल सभी भंवर जाए।
दिल के तार जुड़े होकर दूरियां बाधक नहीं होती।
जब तक बात बच्चों से ना हो मां भी नहीं सोती।
भविष्य बनाने वालों का एहसान कभी भूलना मत।
दुनिया के बहकावो में आ संतान कभी झूलना मत।
जब तक मर्यादा संस्कारों की महक कहीं जाएगी।
परिवार की उमंग चेतना आंखें नई रोशनी पाएगी।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
यह भी पढ़ें :