Kavita Bura na Mano Holi Hai

बुरा ना मानो होली है | Kavita Bura na Mano Holi Hai

बुरा ना मानो होली है

( Bura na Mano Holi Hai )

बुरा न मानो होली है
हुड़दंगियों की बोली है
बुरा न मानो होली है
सबसे पहले बच्चे निकले
पिचकारी से रंग निकले
एक दूजे पर रंग मल दे
हंसते हंसते जंग कर दे
बाँहे सबने खोली है ।
बुरा न मानो होली है ।
हम उम्रो की टोली आई
गली में देखो धूम मचाई
नाच कूदकर रंग जमाई
मिठाई कई तरह की खाई
कहे हम सब हमजोली है ।
बुरा न मानों होली है ।
देवर पीछे भाभी आगे
जीजा पीछे साली भागे
रंग फेके फिर भी न लागे
भंग नशे से कोई न जागे
उटपटांग सी खेली है ।
बुरा न मानो होली है ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
बन जाते सब भाई भाई
रंग पुते चेहरे सब दिखते
प्रेम में सब बेमोल बिकते
लुप्त भेदभाव की बोली है ।
बुरा न मानो होली है ।

आशा झा
दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )

-0-

कान्हा जी राधा बोली है,
झूम रहे हमजोली है।
फागुन रंग बसंती छाया,
धूम मची अब होली है।

रंगों की सजी रंगोली है,
हुड़दंग हंसी ठिठोली है।
भीगी चूनर चोली है,
बुरा ना मानो होली है।

रिश्तो में मिठास घोली है,
अपनापन मीठी बोली है।
रसिकों की निकली टोली है,
बुरा ना मानो होली है।

छंदो गीतों में होली है,
रंगों की रंगत डोली है।
फागुन की मस्ती छाई है,
बुरा न मानो होली है।

मौसम की आंख मिचोली है,
ये प्रीत भरी रमझोली है।
रंगरसिया चंग पर नाचे,
बुरा ना मानो होली है।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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