Kavita Dikhawa

दिखावा | Kavita Dikhawa

दिखावा

( Dikhawa )

 

शुभचिंतक हैं कितने सारे
बाहर गोरे भीतर कारे

मुखरा-मुखरा बना मुखौटा
मिट्ठू दिखते जो हैं सारे

लेकर आड़ झाड़ को काटे
नए और पैने हैं आरे

तन तितली मन हुआ तैयार
ऐसे लोगों के पौ बारे

सब कुछ दे देते हँसकर
गए हाशिये में वे प्यारे

दृष्टि हो गयी इतनी दूषित
सृष्टि भोगती है घाव करारे

Shekhar Kumar Srivastava

शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)

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