Kavita gardishon mein muskurate rahe

गर्दिशों में मुस्कुराते रहे | Kavita gardishon mein muskurate rahe

गर्दिशों में मुस्कुराते रहे

( Gardishon mein muskurate rahe )

 

हंसते रहे हम गाते रहे गर्दिशों में मुस्कुराते रहे
तूफां आते जाते रहे हौसलों से रस्ता बनाते रहे
उर उमंगे उठती रही गीत प्यार भरे गुनगुनाते रहे
मौसम बदले रूप कई रूठे को अक्सर मनाते रहे
गर्दिशो में मुस्कुराते रहे

आंधियों में खेले कभी तूफानों में हम पले
मुश्किलों से लड़कर मंजिलों को हम चले
मुस्कानों के मोती ले दीप आशाओं के जलाते रहे
खुशियों के पल सुहाने हंसकर यूं हम बिताते रहे
गर्दिशों में मुस्कुराते रहे

लोग आते रहे कारवां बना बुलंदियां हुई भावन
बाधाएं झुक सी गई आई खुशियां बनके सावन
चेहरे खिले होठों की हंसी तराने सुहाने आते रहे
सबसे गले मिलके हम प्यार के मोती लुटाते रहे
गर्दिशों में मुस्कुराते रहे

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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