Kavita Ghar ki Izzat
Kavita Ghar ki Izzat

घर की इज्जत बची रहे

( Ghar ki izzat bachi rahe )

 

ज्यादा पाकर मैं इतराऊं,
कम से मनवा दुखी रहे।
दोनों की जाने दो भगवन,
घर की इज्जत बची रहे।।

घर आया भूखा ना जाए,
नहीं मांगने मैं जाऊं।
इतनी ताकत मुझको देना,
मेहनत करके ही खाऊं।।

अपने कर्मों पर इतराऊं,
पर सेवा में रूचि रहे।
दोनों की जाने दो भगवान,
घर की इज्जत बची रहे।।

द्वेष भाव से दूर रहूं मैं,
अहंकार ना आ पाए।
दीन दुखी जो आए दर पर,
झोली भरके ही जाए ।

अपना भाग लिखा जो खाए,
भागम भागी मची रहे।
दोनों की जाने दो भगवान,
घर की इज्जत बची रहे।।

खिले रोशनी आंगन मेरे,
काम देश के आऊं में।
जीवन बीते सुख में सारा,
मानव धर्म निभाऊं में।।

राही सत का बन जाऊं मैं,
पावन चादर बिछी रहे।।
दोनों की जाने दो भगवान,
घर की इज्जत बची रहे।।

जब भी मन हिचकोले खाए,
अपना रूप दिखा देना।
बीच भंवर में नैया डोले,
आकर पार लगा देना।।

जांगिड़ पथ को सुगम बनाना,
तेरी मेरी जची रहे।
दोनों की जाने दो भगवान,
घर की इज्जत बची रहे।।

 

कवि : सुरेश कुमार जांगिड़

नवलगढ़, जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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