हिन्दुस्तान को जगाओ | Kavita Hindustan ko Jagao
हिन्दुस्तान को जगाओ
( Hindustan ko Jagao )
हम कुम्भ की भाँति सो रहे हैं,
बाहरी आकर हमें टटोल रहे हैं,
हम खुशी का सपना देख रहे हैं,
बाहरी कारोबार को बटोर रहे हैं,
हम हिन्दू हिन्दी में खुश हो रहे हैं!
बाहरी हिन्दुस्तान को लपेट रहे हैं।
हम मात्र दो बच्चों में बस कर रहे हैं,
वो अनेक,आगामी लेकर डोल रहे हैं।
क्या तुम्हें ,भविष्य की चिंता नहीं है??
चेतो वंशज का अस्तित्व खत्म हो रहा।
घोर तन्द्रा से जाग, जरा होश में आओ,
अपना शहर, गांव मुस्लिम बहुल हो रहा!
अब नहीं चेतोगे तो फिर खात्मा निश्चित,
निहारो, हमारा वजूद भस्म हो रहा है।
है विदेशी ही बाहरी सौन्दर्य को दिखाते,
देश में हलाला हिन्दू जिस्म का हो रहा है!
बच्चों को सनातन का पाठ पढ़ाओ,
जो समुदाय गद्दार है, से दूरी बनाओ।
ऐसा नहीं कि सब काफिर हैं भारत में,
अत्यंत अच्छे मुस्लिम को गले लगाओ।
जो है भारतीय जरूर भारत को चाहेंगे,
जो आए हैं आतंकी उनको मार गिराओ।
हर हाल में स्वतंत्रता और शान्ति चाहिए ,
हिन्दू हो, हिन्दी से हिन्दुस्तान को जगाओ ।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
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