इक भॅवरा | Kavita Ik Bhanwara
इक भॅवरा
( Ik Bhanwara )
इक भॅवरा है मस्त मिलोगे
करता है गुन्जार मिलोगे
कहता है वो कली से जाकर
क्या मुझको स्वीकार करोगे
कली खिली और खुलकर बोली
कहो मेरी हर बात सुनोगे
छोड़ के मुझको किसी कली से
तुम नजरें न चार करोगे
बोलो मुझको प्यार करोगे
भंवरा बिन सकुचाते बोला
मानूगा तुम जो भी कहोगे
शर्त है इतनी अपनी खुशबू
गुलशन मे तुम नहीं भरोगे
जान के एक-दूजे की नीयत
दोनो ही चुपचाप रहे
कि कली महकना न छोड़ पाएगी
तुम भी भंवरे गुन्जार करोगे
इक भंवरा है मस्त मिलोगे..
रचना: आभा गुप्ता
इंदौर (म.प्र.)