Kavita acha hua dost
Kavita acha hua dost

अच्छा हुआ दोस्त

( Acha hua dost ) 

 

अच्छा हुआ दोस्त,
जो भ्रम टूट गया
साथ होने का तेरा वादा,
जो अब छूट गया ।।

तुझे बादशाही मुबारक
तेरे शहर की,
मुझे मेरे गांव का
मुसाफिर ही रहने दे ।।

अच्छा हुआ चलन नहीं रहा
अब किसी के विश्वास का
खुद के खुदा को आखिर
किसी की कोई तलाश कहा ।।

दोस्ती के लिए तेरा अक्सर ,
मेरे घर आना, जाना, हम प्याला
वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ
किताबी बातों की तरह छूट गया ।।

आज ठोकर खाई है
तब जाकर कहीं आज
मतलबी दुनिया की ये,
दोस्ती समझ आई ।।

हमने तो कोशिश की थी
रंग जमाने की यारी में,
तेरे विचारों की भी कहीं
बहुत गहरी खाई थी शायद ।।

दोस्ती के लिए, कहां रहा गया
वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा
मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही,
मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।।

 

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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