जगजननी जानकी

( Jag Janani Janaki )

 

अपने चरित्र और चिंतन से नारी जीवन के दर्शन दिखलाइए,
विपदाओं से घिरी जानकी ने कुल की मर्यादा को बतलाया ।।

जिस धोबी ने स्त्री को करके कलंकित घर से निकाला था,
माता की हर भाव को पीड़ा में देख वह भी बहुत पछताया था।।

समझ लेता अग्नि परीक्षा फिर भी सिया देकर मुस्कुराई थी,
शक्ति को माता रूप में पाकर भी दुनिया कहां समझ पाई थी।।

सतित्व माता का अटल अमर था,रावण भी उनसे हरा था!
प्रिया लक्ष्मी को नमन करके वह मन ही मन मुस्कुराया था।।

आज दिवस माता का हैं हम भक्त जानकी को सभी मानते हैं
धरती में समा गई मां सीता,हम प्रमाण कर बारंबार बुलाते हैं।।

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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