जीवन की शुरुआत | Jeevan ki Shuruaat
जीवन की शुरुआत
( Jeevan ki Shuruaat )
हम हरदम ही हारे ज़माना हमेशा हमसे जीत गया,
हार जीत के इस खेल को खेलते जीवन बीत गया,
सारे दाव-ओ-पेंचों को समझने में उम्र निकल गया,
खेल के इख़्तिताम पे तन्हा थे दूर हर मनमीत गया,
रिश्तों की उलझी गिरहें सुलझाने में खुद यूँ टूट गए,
फिर ना खुद को जोड़ पाए, जीवन यूँ ही बीत गया,
जिसे गुनगुना कर उदास शामें भी, खिल जाती थी,
आजकल न जाने क्यों हमसे है रुठ वो संगीत गया,
बहारें जो गयी तो फिर न उसने दस्तक दी”आश “,
कि..मेरे गुलिस्ताँ में ख़ुशी की सूख पत्ती पत्ती गया!
आश हम्द
( पटना )