कुदरत का करिश्मा | Kavita Kudrat ka Karishma
कुदरत का करिश्मा
( Kudrat ka Karishma )
नीचे ऊपर के मिलन से
देखो बारिस हो रहा।
बदलो का पर्वतो से
देखो टकराना हो रहा।
जिसके कारण देखो
खुलकर वर्षा हो रहा।
स्वर सरगम के मिलन से
देखो वर्षा हो रहा।।
गीत मल्हार के सुनकर
खुश हो रहे इंद्रदेव।
और खुशी का इजहार
कर रहे वर्षकर।
जिससे पेड़ पौधे फूल-पत्ती
सब हरे भरे हो रहे।
और बरसकर देखो बदल
हम सब आनंदित हो रहे।।
देखो ईश्वर की संरचना को
और देखो उसकी गणना को।
देखो कुदरत के करिश्मा को
और देखो प्रकृति के सौंदर्य को।
जो दोनों के मिलन से होता है
एक अकेला क्या कर सकता है।
इसलिए विधाता ने जोड़ी बनाई है
और पृथ्वी की सुंदरता बढ़ाई है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई