
कुदरत की आवाज !
( Kudrat ki aawaj )
कुदरत से छल करके कहाँ जाओगे,
बहाया उसका आँसू तो बच पाओगे?
कुदरत का सिर कुचलना मुनासिब नहीं,
बचाओगे उसको तो दुआ पाओगे।
जोशीमठ में जो मची है हाय – तौबा,
क्या फजाओं को फिर से हँसा पाओगे?
काटा पहाड़, बनाई हाट, सुरंग,सड़क,
क्या फिर से पहाड़ तू बना पाओगे?
सूरज – चाँद जिसका उठाते थे डोला,
क्या गौने की दुल्हन बना पाओगे?
जिन प्राणियों का तूने उजाड़ा बसेरा,
उनका आँसू हँसी में बदल पाओगे?
कुदरत की आवाज को दबाया बहुत,
उसके गालों की झुर्री हटा पाओगे?
आँख का काजल वो गजरे की खुशबू,
किया तूने गायब , लौटा पाओगे?
उसके दामन में तूने बिछाए जो काँटे,
क्या वफाओं के फूल खिला पाओगे?
मत चीर खंजर से पर्वत का सीना,
जो लूटी है दौलत, क्या दे पाओगे?
रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
यह भी पढ़ें:-