Kavita Main Zero Bhi Hero Bhi
Kavita Main Zero Bhi Hero Bhi

मैं ज़ीरो भी हीरों भी

( Main zero bhi hero bhi )

 

मुझको पता है कि मैं एक हूं ज़ीरो
लेकिन अंको में एक मैं ही हूॅं हीरों।

महत्त्वपूर्ण भूमिका गणित में मेरी
मान पद्धति का अपरिहार्य प्रतिक।

अंको में मेरी केवल शुन्य पहचान
मेरे बिना बढ़ें नही अंको का ज्ञान।

ज़रूरत पड़े तब चाहतें है मुझको
उठाकर इधर-उधर लगाते मुझको।

अकेंले का मेरा नही कोई सम्मान
एक भी संख्या साथ रहें तब मान।

डब्बल ज़ीरो या लिखें हजार ज़ीरो
अपनी जगह पर में ज़ीरो ही हीरों।

दाहिनें तरफ में मेरी बढ़ती कीमत
बाएं तरफ में वही ज़ीरो 0 कीमत।

मैं तो शून्य हूॅं सब काम करो पुण्य
सोचों व समझों रहो सब सामान्य।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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