मायका | Kavita Maayka
मायका
( Maayka )
मायके का तो रगँ ही अलग है
हर दिन एक मेला सा लगता है
रिश्ते-नाते दोस्त पडोसी
हर कोई मिलने आता है
पल भर मे मिट जाती है थकान सफर की
जब भाभी हाथो की चाय पिलाती है
दो घूट भरते ही माँ की याद दिला जाती है
खिल जाते है चेहरे सबके बच्चे खुशी से लिपट जाते है
भुआ आयी भुआ आयी जब जोर से चिल्लाते है
बया ना कर पाऊ शब्द खुशी के
खुशी अश्को मे सिमट जाती है|
बहुत खुशनसीब होती है वो बेटिया
जो मा_पापा के बाद भी मायके मे सम्मान पाती है
सुनीता (छत्तीसगढ़ )