सौतन
सौतन

सौतन

( Sautan )

 

कर में सौतन देके गये ब्रजनाथ राधिका रानी के।
खेलते रही अधर पर प्रिय के राज किये मनमानी के।।१

 

गये श्याम जबसे मथुरा हैं भूल गये गोकुल नगरी,
घटा कालिंदी का जल इतना लगती है उतरी उतरी।
चले गये चितचोर नैन जलधार बहे राधारानी के।। २

 

छायी खुशी कौशिला के मन सुत मेरा युवराज बनेगा,
जलती हैं तो जलें सौत पर मेरा बेटा राज्य करेगा।
झपट पड़ी कैकई हुआ वनवास राम गुणखानी के।। ३

 

टपक पड़े आंसू सुनीति के सौत डाह का रहा असर,
ठगी रह गयी सुरुचि जब ध्रुव के समक्ष आये ईश्वर,
डटे रहें ध्रुव गगन में प्रतिफल उषा सांध्य अगवानी के।।४

 

ढाढ़स यशोधरा के मन में कैसे बंधे अश्रु अविरल से
तत्व हृदय का चुरा ले गयी खींच के मेरे राज महल से।
थम गयी सांस कांता की जब सुनी पती प्रस्थानी के।।५

 

दुखी है रानी नागमती पति सिंघल सौतन पास गये,
धधकत हृदय नैन जल बरसत मग जोहत मन हारि गये,
न जाने क्या भा गयी उनको पद्मावती सुहानी के।।६

 

पग पग माया सौतन रोकति आत्मदेव से मिलने से,
फेरत माला युग बीता पर कमल रह गया खिलने से,
ब्यर्थ हुआ आने का सपना तृष्णा की बलवानी के।।७

 

भरे महल मे आठ सौत दिन-रात टीस रखे अक्सर,
महत् तत्व पर सतो रजो तम घात करे बहु छिप छिपकर,
यम सी त्रास देखावति सौतन मुझ दुखियानी के।। ८

 

रम्भा सी देवरानी लाकर खूब जेठानी चहकि रही,
ले आये सौतन पति मेरे रात रात भर मटकि रही,
विदेश जाकर प्रतिज्ञा भूले मेरी प्रेम कहानी के।। ९

 

शहद बनी वह मैं विष लगती प्रियतम के अन्तर्मन में,
षड्यंत्र ही सदा करत है मेरे रोपित उपवन में,
स्वप्न सुंदरी बन के विहरै जस सुरपुर इंद्रानी के।। १०

 

हहरि हहरि हहरात सृष्टि में दुख का कारण यही बनी,
क्षमापात्र यह कभी नहीं है इसी ने छीना प्रेम धनी,
त्रिलोक चिन्तित शेष इसी से जले दीप बुद्धिमानी के।।११

?

कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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