मैं और वो आशा
( Main aur woh aasha )
मैं जूझ रहा तूफानों में आंधी और वीरानो में
रेतीले धोरों में उंची घाटियों और चट्टानों में
एक आशा की किरण मुझे साहस संबल दे रही
राह की बाधाएं मेरी पग पग पे परीक्षा ले रही
मन में आस जगाए मैं भी मंजिल को बढ़ता रहा
मुश्किलों का किया सामना प्रगति पथ चढ़ता रहा
आशाओं ने धीरज बांधा हमको हौसला दिया
मेरी हर मुश्किलों का मुंह तोड़ जवाब दिया
अपनी धुन में चलता जाता मैं भी होकर मतवाला
कदम कदम पर आशाओं ने मुझको खूब संभाला
संघर्षों से लोहा लेकर मैं फौलादी बन आया
मेरे मन की हिम्मत ने आशा का दीप जलाया
राम आएंगे बांट जोहती वो शबरी बियाबान में
चख चख बेर खिला प्रभु को मगन हुई ध्यान में
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )