
सिवा खुद के
( Siva khud ke )
किताबें ही सिखाती नही ,जिंदगी मे सबकुछ
जिंदगी भी सीखा देती है हमे बहुत कुछ
पढ़नेवाले ने क्या खोया है और क्या पाया है
अनपढ़ भी देख समझ लेता है बहुत कुछ
ज्ञान धरा पर बपौती नहीं किसी के बाप की
संगत भी सीखा देती है इंसा को बहुत कुछ
लगी है भीड़ अपना कहनेवाले रिश्तेदारों की
वक्त भी करा देता है हमे पहचान बहुत कुछ
हमराज,हमदर्द,हमसफर ,तो दिखते हैं कई
संघर्ष का दौर भी बता देता है बहुत कुछ
सिवा खुद के ,कहीं कुछ नही है जमाने मे
चलना है ठानकर ,तब ही पाना है सबकुछ
( मुंबई )