मन | Kavita Man
मन
( Man )
मत पूछो ये चंचल मन ,
भला कहां कहां तक जाएं
कभी पुरानी यादों में झांके,
कभी कही यूहीं खो जाएं ।।
कभी अकेला ही मस्त रहें,
कभी ये तन्हां महसूस करें
कभी ढूंढे किसी का साथ
कभी अलग थलग हो जाएं।।
मत पूछो इस मन की तुम
ये क्या नही करना चाहें,
पतंग सा उड़े काल्पनिक
कभी पंछी सा फड़फड़ाए ।।
कभी उदास हो जाता हैं ये ,
कभी आशाओं के दीप जलाएं
अपनी अमिट भावनाओ संग
फिर खुद ही उत्सव ये मनाएं।।
हार जीत न जाने ये मन मेरा ,
बस अनुभव की बात बताएं
कभी चंचल गीत गुनगुनाता
कभी ये मन वैरागी बन जाए ।।
विचारों से मन पावन रहें बस
किसी मोह में न फस जाएं,
बन बाबरा बस भक्ति करें ये
राम नाम ये प्रभु जपता जाएं।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
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