
मानव का उसूल
( Manava ka usul )
चकाचौंध में खो गया नर धन के पीछे भाग रहा
आज आदमी नित्य निरंतर व्यस्त होकर जाग रहा
झूठ कपट सीनाजोरी कालाबाजारी रिश्वतखोरी
मानव का उसूल कैसा झूठे वादे बस बातें कोरी
प्रलोभन मोह माया के जाल पर जाल फेंक रहा
नीली छतरी वाला भी अब लगा टकटकी देख रहा
भाईचारा सद्भावों की सारी बातें गई किताबों में
बस दिखावा रह गया झूठी शानो शौकत ख्वाबों में
बहती गंगा में हाथ धोकर चल देते हैं राहों में
अपना उल्लू सीधा कर ले गिरे भले निगाहों में
जो ऊंचे ओहदे पर आए उनके उसूल बड़े भारी
कुर्सी तोड़े बैठ निरंतर हजम हो धन सरकारी
देख दशा परिवारों की अब टूटे रिश्ते नाते सारे
दया धर्म विश्वास खो गया खो गये संस्कार हमारे
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )