मतलब भरा कैसा ये दौर | Kavita matlab bhara kaisa ye daur
मतलब भरा कैसा ये दौर
( Matlab bhara kaisa ye daur )
नफरत का बाजार सजा अपनापन वो प्यार कहां
उल्फत के सौदागर बैठे कर रहे खड़ी दीवार यहां
प्रेम प्यार भाईचारा की सब टूट रही रिश्तो की डोर
अपनापन अनमोल खोया घट घट बैठा स्वार्थ चोर
मतलब भरा कैसा ये दौर
घृणा बैर ईर्ष्या की आंधी अंधाधुंध सी भागमभाग
अपनी-अपनी ढपली बाजे लेकर सारे अपना राग
झुलस रहे उपवन सारे पुष्प महकते कभी पुरजोर
उल्फत के सौदागर छीने वो सुहानी अमन की भोर
मतलब भरा कैसा ये दौर
जग ढोंगी पाखंडी छाए छद्म वेश बदलकर आए
अपना बन राज ले जाए पग पग नर धोखा खाए
दिखावे की दुनिया में बोलो कैसे नाचे मन का मोर
उल्फत के सौदागरों ने खरीद लिए सब मीठे बोल
मतलब भरा कैसा ये दूर
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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