मेरे मन का दर्पण | Kavita Mere Man ka Darpan
मेरे मन का दर्पण
( Mere Man ka Darpan )
मेरे मन के दर्पण मे तस्वीर तुम्हारी है कान्हा,
प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा,
खोली ऑखें तुझको पाया मूॅदी ऑख तुझे ही,
कितना भी देखूं तुझको न ऑखों की प्यास बुझेगी,
इकदिन सम्मुख दरसन दोगे सोच रही हूं मै कान्हा,
प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा,
मूरत मोहनी तेरी मेरा मन ललचाया करती है,
तेरे चेहरे की वो अलकें मुझे उलझाया करती हैं,
आकर मेरा मन सुलझाओ सोच रही हूं मै कान्हा,
प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा,
मेरे मन का छोंड़ के दर्पण कहीं नहीं तुम जाओगे,
होंठों की तेरी मधुर बांसुरी गाकर मुझे सुनाओगे,
यादों मे तेरे बैठी बैठी सोच रही हूं मै कान्हा,
प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा।
आभा गुप्ता
इंदौर (म. प्र.)