Kavita Mere School ka Doodh

मेरे स्कूल का दूध | Kavita Mere School ka Doodh

मेरे स्कूल का दूध (एक घटना)

( Mere school ka doodh – Ek ghatna ) 

 

दुःख ही जीवन की कथा रही

यह सदा  कष्ट  की व्यथा रही।

 

कब  तक  कोई लड़ सकता है!

कब  तक  कष्टें  सह सकता है

हो  सहनशक्ति   जब  पीर परे

है  कौन  धीर  धर  सकता है?

 

मन  डोल  उठा यह देख दृश्य

उस  बच्ची का जीवन भविष्य

जो  आयी  थी कुछ बनने को

नन्हीं  प्यारी  नासमझ  शिष्य।

 

सब   बच्चें   पीते  दूध  लिए

जो  बांट  उन्हें  थे  दिए  गए

तन मन करुणा से कांप उठा

मानो हिय पर बज्रपात हुए।

 

वह  बच्ची  तनिक  न दूध पिया

इक  बोतल  में  रख  उसे लिया

मैं   देख-  देख  कर  सोच  रहा

यह करती क्या फिर पूछ लिया।

 

प्यारी बिटिया पी जाओ इसे

हो रखती किन आशाओं से

सुन उत्तर अचल शरीर हुआ

नन्हीं  बच्ची  की  भावों से।

 

थी चौंक पड़ी मन की भोली

वह  दबी  दबी स्वर में बोली

ले   जाऊंगी   घर  पे  अपने

बहना खातिर जो  अनबोली।

 

मां  ने  मुझको  समझायी  थी

यह   बात  मुझे  बतलायी थी

बिन   दूध   पिए  बहना  तेरी

वह बहुत बहुत अकुलायी थी।

 

जब  दूध  बंटे  विद्यालय में

ले अना खुद तुम आलय में

पी   दूध  क्षुधा  मिटजायेगी

अब  दूध  कहां  देवालय में।

 

तू है कैसा सच्चा ईश्वर

तू दूध नहाता है दिन भर

क्या दिखता है ना दीन दशा?

क्यों खोते ये जीवन मर मर?

( अम्बेडकरनगर )

यह भी पढ़ें :-

कलयुग की कली | Kavita Kalyug ki Kali

 

 

 

 

 

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *