Kavita Dhyan Aapka hi Dharta Hoon
Kavita Dhyan Aapka hi Dharta Hoon

ध्यान आपका ही धरता हूं

( Dhyan aapka hi dharta hoon ) 

 

मैं हर जगह बस छवि आपकी,
नैनों में देखा करता हूं।
तारणहारा तुम हो भगवान,
ध्यान आपका ही धरता हूं।।

अज्ञानी हूं अनजाना हूं,
दोष भरें हैं घट में मेरे।
गुरुवर तुम बिन कौन सहायक,
नाम रटूं मैं सांझ सवेरे।

उलझा विषियन के घेरे में ,
निर्जन वन विचरण करता हूं।।
तारणहारा तुम हो भगवन ,
ध्यान आपका ही धरता हूं।।

जगह जगह पर भटक रहा हूं,
राह नजर ना कोई आता।
अंतर्मन में सोच रहा हूं,
किसको अपनी व्यथा सुनाता।।

बिना आपके किसे बताता,
गहरे सागर से डरता हूं।।
तारणहारा तुम हो भगवान,
ध्यान आपका ही करता हूं।।

देख लिया इस सारे जग को,
मतलब की है दुनियादारी।
मन का काला बाहर सुंदर,
फिर भी दिखा रहा है यारी।।

कब आ जाए मेरी बारी,
फूंक-फूंक कर पग धरता हूं।
तारणहारा तुम हो भगवन,
ध्यान आपका ही धरता हूं।।

जन्म लिया जिस मातृभूमि पर,
उस माता का कर्ज चुकाऊं।
पर सेवा उपकार करूं नित,
प्रेरक ऐसा मैं बन जाऊं।।

जांगिड़ जीवन सफल बनाऊं,
बद कर्मों से ही डरता हूं।।
तारणहारा तुम हो भगवन,
ध्यान आपका ही धरता हूं।।

 

कवि : सुरेश कुमार जांगिड़

नवलगढ़, जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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