मृत्यु तुल्य विश्वास | Kavita Mrityu Tulya Vishwas

मृत्यु तुल्य विश्वास

( Mrityu Tulya Vishwas )

मृत्यु तुल्य विश्वास पड़ा है ,संजीवन पिलवाओ ।
रजनी के माथे पर कोई ,फिर बिंदिया चमकाओ।।

तुम्हीं शिवा राणा लक्ष्मी हो ,और जवाहर गाँधी ।
तुमने ही मोड़ी थी बढ़कर ,काल चक्र की आँधी ।
अर्जुन जैसा आज यहाँ पर , तुम गाण्डीव उठाओ ।।
मृत्यु तुल्य विश्वास——

कब तक होगी मारा मारी ,कब तक लूट खसोट ।
कब पहनोगे महाबली तुम, अपने टँगें लगोंट ।
अब बनकर हनुमान धरा पर , तुम कर्तव्य निभाओ।।
मृत्यु तुल्य विश्वास——

कहीं काल का ताण्डव होता ,कहीं लुटी है नारी।
भारत के सिंहासन पर क्या , बैठ गई लाचारी ।
वीर भगत अश्फाक ज़फ़र की , गाथायें दुहराओ ।।
मृत्यु तुल्य विश्वास——

आज विश्व के मानचित्र पर ,छाई घोर निराशा ।
आतंकी बारूद खा गई ,प्रेम भाव की आशा ।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे को ,मिल कर सभी सजाओ।।

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

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