नवनिर्माण | Kavita Navanirman
नवनिर्माण
( Navanirman )
बीती बातें भूले हम सब,
आओ नवनिर्माण करें।
नवल रचें इतिहास पुनः अब ,
जन-जन का कल्याण करें।।
रहे मीत सच्चाई के हम ,
झूठों से मुख मोड़ चलें।
निश्छलता हो प्रेम सुधा रस ,
भेद-भाव को छोड़ चलें।।
सबक सिखा कर जयचंदो को,
हर दुख का परित्राण करें।
बने तिरंगे के हम रक्षक,
शत्रु भाव का अंत रहे।
शीश झुका दे हर रिपु का हम,
हर ऋतु देख वसंत रहे।।
देश भक्ति की रहे भावना,
न्योछावर हम प्राण करें।
नैतिकता की राह चलें हम,
भौतिकता का त्याग रहे।
मानवता की कर लें सेवा,
दुखियों से अनुराग रहे।।
अंतस बीज प्रेम के बोएँ,
पाठन वेद -पुराण करें।
राम -राज्य धरती पर लाएँ,
अपनों का विश्वास बनें।
तोड़ बेड़ियाँ अब सारी हम,
भारत माँ की आस बनें ।।
रूढिवाद को दूर भगाकर,
हम कुरीति निर्वाण करें।
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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