Maa ki mamta poem
Maa ki mamta poem

माँ की ममता

( Maa ki mamta )

 

तुम्हारें हर रुप को मेरा वन्दन है माँ,
तेरे इन चरणों को मेरा प्रणाम है माँ।
माँ तू ही यमुना और तुम ही जमुना,
तुम ही गंगा, कावेरी तुम ही नर्मदा।।

 

माँ तुझमे है दुर्गा और तुझमे लक्ष्मी,
ममता की हो मूरत भोली सी सूरत।
तुझमें ही गौरा एवं काली कुष्मांडा,
पूरा करती हो सदा मेंरी हर ज़रुरत।।

 

माता हम सब है तुम्हारी ही सॅंतान,
देती हो मुँख निवाला और मुस्कान।
तुम्हारे चरण में विश्व के चारों धाम,
तुझमे माँ सीता और राम भगवान।।

 

नौ महिनें मुझको तुने गर्भ में पाला,
कई मुश्किलें परेशानियों को झेला।
सींचा था मुझको अपनें इस लहू से,
और दिखाया मुझे दुनियाॅं उजाला।।

 

गाय में ममता कुतिया में भी ममता,
शेरनी अथवा हथनी में देखा ममता।
जीव जन्तु सभी मे मातृत्व लालसा,
जुटा लेती हो बच्चों के लिए क्षमता।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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