परख | Kavita Parakh
परख
( Parakh )
न था आज कल से जुदा
न होगा आज कल से
होती नही स्थिरता जल में कभी
हो रही नित हलचल से
जुड़ा है धागा समय से
घटनाएं हैं मनके जैसी
हर मनके का है मूल्य अपना
जीवन में हर एक सांस जैसी
हर लम्हे दे जाते हैं कुछ
हर लम्हे ले जाते हैं कुछ
लेन देन के इसी व्यवहार में
करनेवाले भी कर जाते हैं कुछ
दामन भर नही देता आकर कोई
पासरना भी होता है उसे
निकल गये हैं जो लोग आगे
साथ के लिए पुकारना भी होता है
हर वक्त के फैसले गलत हि नही होते
हर फैसले सही हि नही होते
परखना भी होता है हाले दौर के साथ
दौर को भि मगर दोष हि नही देते
( मुंबई )