पर्दे के पीछे | Kavita Parde ke Peechey
पर्दे के पीछे
( Parde ke peechey )
रंगमंच है ये सारी दुनिया पर्दे के पीछे क्या होता।
दिखता है वो बिकता है मंचों पर अभिनय होता।
भांति भांति किरदार लिए लाना रूप धरे जाते हैं।
नाटक में डूबी दुनिया मुखौटो पे मुखोटे आते हैं।
पता नहीं ऐसा लगता है कलाकार जब आते हैं।
पर्दे के पीछे से कोई रह रहकर संवाद सुनाते हैं।
रणनीति राजनीति में कई पर्दे के पीछे होते हैं।
मोहरे बन जाते हैं लोग शतरंजी बिछौने होते हैं।
शह मात उठा पटक का रच जाता है माहौल जहां।
डांवाडोल कुर्सी डोले किरदारों की खुले पोल वहां।
हर कोई ऊंचे ओहदे पे किरदार निभाना चाहता है।
हर कोई सत्ता सुख का रस भोग लगाना चाहता है।
पर्दे के पीछे से कोई जब खींच लेता पर्दे की डोर।
नाटक सारे धरे रह जाते कुर्सी ले जाए कोई और।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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