परिकल्पना | Kavita parikalpana
परिकल्पना
( Parikalpana )
बाइस में योगी आए हैं, चौबीस में मोदी आएगे।
भारत फिर हो विश्व गुरू,हम ऐसा अलख जगाएगे।
सदियों की अभिलाषा हैं, हर मन में दीप जगाएगे,
हूंक नही हुंकार लिए हम, भगवा ध्वज लहराएगे।
सुप्त हो रहे हिन्दू मन में, फिर से रिद्धम जगाएगे।
जाति पंथ का भेद मिटा हर, हिन्दू को एक बनाएगे।
सिमट गयी जो सीमाएं, उनको फिर वापस लाएगे।
ढाकेश्वरी और कटासराज भी, भगवामय हो जाएगे।
बिना सिन्ध के हिन्द कहाँं है,रावी बिन पंजाब नही।
गंगा कैसे सुखी रहेगे, जब तक संग चिनाब नही।
हम मन में यह गाँठ बाँध, सतलज भारत मे लाएगे।
मानसरोवर की घाटी में, जन मन गण जब गाएगे।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )