प्रेमपाश अनुबंधन | Kavita Prempash Anubandhan
प्रेमपाश अनुबंधन
( Prempash anubandhan )
शरद गर्म वर्षा का आना,
हेंमत शिशिर बसंत सुहाना।
अलग रंग में रंगी प्रकृति,
कैसा सुंदर जग का बंधन।।
मानो प्रेमपाश अनुबंधन।।
ऋतु बसंत को मदन कहां है,
जन-जन में उल्लास बहा है।
बाग बगीचे सब हरषाए,
नव पल्लव में मोद भरा है।
मन मधुकर सम है स्पंदन।
मानो प्रेमपाश अनुबंधन।।
प्यासी धरती आस लगाए,
कब मेघा पानी बरसाए।
मिटे तपन हर जीव जन्तु की,
हरियाली सबके मन भाए।
हृदय भाव से हो अभिनंदन।
मानो प्रेमपाश अनुबंधन।।
आओ जीवन सरस बनाएं,
नीरसता को दूर भगाएं।
प्रेम प्रीत का भाव जगाकर,
जांगिड़ हम मानव बन जाएं।
आज करें कुदरत को वंदन।।
मानो प्रेमपाश अनुबंधन।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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