Kavita purani pension bahal karo
Kavita purani pension bahal karo

पुरानी पेंशन बहाल करो

( Purani pension bahal karo )

 

हर मुफलिस का देखो कलम सिपाही हूँ,
मैं भी नंगी- पगडंडी का राही हूँ।
जीवन जीने का मेरा अपना वसूल है,
जो बातें सही नहीं लगती, फिजूल हैं।

लोकतंत्र के पिलर तोड़े जाते हैं,
औरों के सिर ठिकरे फोड़े जाते हैं।
महज तालियों से बात नहीं बनती,
सिर्फ कफन से लाश नहीं जलती।

सत्ता में बैठे! पुरानी पेंशन बहाल करो,
जवानी निचोड़नेवालों से न सवाल करो।
ज्वालामुखी के द्वार पे इन्हें मत बैठाओ,
वृद्धावस्था का बासंती फूल खिलाओ।

तुम अपनी सारी सुविधाएँ लेते हो,
क्यों उनके बुढ़ापे की लाठी छीनते हो?
ये उनका शौक नहीं बल्कि मजबूरी है,
सांस चलने के लिए ये बेहद जरूरी है।

मैं हर परेशान के आँसुओं का आग हूँ,
आँधी-अंधड़ में जलनेवाला चराग हूँ।
अंधकार हमेशा से हारा है उजाले से,
मैं अपने आप में देखो! इंकलाब हँू।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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