तारों की महफ़िल | Kavita Taaron ki Mehfil
तारों की महफ़िल
( Taaron ki Mehfil )
जब शाम होने को होती है एक एक तारा निकल आता है,
ज्यों ज्यों रात की शुरुआत होती इनका झमघट हो जाता है।
रात का नया पड़ाव ऐसे सजाती तारें जैसे रोज दिवाली है,
दीपों जैसी सुन्दरता इठलाती बलखाती रात सुहानी है।
जब लेटा किसान मजदूर चारपाई पर लेटे-लेटे गिनता तारें,
खुला आसमान खुश मिजाज हर कोई जानता खिसका तारे।
टिम टिम धुंधलाईं रोशनी कितनी सुन्दर लगती है गगन में,
जैसे पनघट पर अलंकृत कर रहे ऐसी गज़ब चुनरी गगन में।
तारों की महफ़िल सजी कौन ज्यादा खूबसूरत चमकेगा,
पुच्छल तारा अनुकरण करता कौन ज्यादा बरतेगा।
उल्का पिंड भी आसमान में उमड़-घुमड़ शोर मचाती हैं,
आकाश गंगा भी गगन में तारों संग अपना रास रचाती है।
महफ़िल सजी तारों की कौन आकाश का राजा बनेगा,
पुच्छल तारा ध्रुव तारा का आयोजन पर्चा दाखिल कौन करेगा।
खान मनजीत भी भूगोल का और कुदरत का तलबगार,
कुदरत की रक्षा करनी होगी तभी होगा सुखद संसार।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )