
मुर्दे की अभिलाषा
( Murde Ki Abhilasha )
लगी ढ़ेर है लाशों की
टूट चुकी उन सांसों की
लगी है लंबी कतार,
बारी अपनी कब आएगी?
कब खत्म होगा इंतजार?
जीवन भर तो लगे ही लाईन में,
अब लगे हैं श्मशान में।
हे ईश्वर!
मानव जीवन कितना कष्टमय है?
जीवन तो जीवन मृत्यु पर भी भय है!
नहीं चाहते ऐसा जीवन आगे से से से ईश्वर!
श्वान खग मृग लोमड़ी बनाना,
हम पर अति कृपा करना;
पर मानव न बनाना?
जहां पड़ता है मुर्दों को भी लाईन लगाना!
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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